मणिपुर में लगातार बढ़ती हिंसा को देख आम नागरिक को काफा परेशानी हो रही है। राज्य में शांति व्यस्था बनाने के लिए अब वहां की महिलाएं आगे आ गई है। कई जिलों में सैकड़ो की संख्या में महिलाएं हिंसा की निंदा करने के लिए सड़को पर उतर गई है।
आग की मशालें लेकर निकाली रैली
इंफाल में पूर्व- पश्चिम, थौबल और काकचिंग जिलों में बीते दिन शनिवार को शाम सात बजे से रात आठ बजे तक सड़कों पर महिलाएं हाथ में आग की मशालें लेकर एकत्र हुईं और रैली निकाली।
एनआरसी लागू करने की उठी मांग
महिलाओं ने कहा कि वो सब सरकार से बहुत निराश है। वे हिंसा को रोकने और सुरक्षा प्रदान करने में विफल रहे हैं। सड़कों पर उतरी महिलाओं ने म्यांमार से अवैध अप्रवासियों की घुसपैठ का भी विरोध किया। महिलाओं ने राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) को लागू करने की मांग को लेकर नारेबाजी की। बता दें कि मणिपुर में एक महीने पहले भड़की मीतेई और कुकी समुदाय के लोगों के बीच जातीय हिंसा में 100 से अधिक लोगों की जान चली गई है। राज्य सरकार ने अफवाहों को फैलने से रोकने के लिए 11 जिलों में कर्फ्यू लगा दिया था और इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया था।
मणिपुर में विवाद का ये है कारण
मणिपुर की राजधानी इंफाल बिल्कुल बीच में है। ये पूरे प्रदेश का 10 फीसदी हिस्सा है, जिसमें प्रदेश की 57 फीसदी आबादी रहती है। बाकी चारों तरफ 90 फीसदी हिस्से में पहाड़ी इलाके हैं, जहां प्रदेश की 42 फीसदी आबादी रहती है। इंफाल घाटी वाले इलाके में मैतेई समुदाय की आबादी ज्यादा है। ये ज्यादातर हिंदू होते हैं। मणिपुर की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी करीब 53 फीसदी है। राज्य के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं।वहीं, दूसरी ओर पहाड़ी इलाकों में 33 मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं। इनमें प्रमुख रूप से नागा और कुकी जनजाति हैं। ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं।
इसके अलावा मणिपुर में आठ-आठ प्रतिशत आबादी मुस्लिम और सनमही समुदाय की है। भारतीय संविधान के आर्टिकल 371C के तहत मणिपुर की पहाड़ी जनजातियों को विशेष दर्जा और सुविधाएं मिली हुए हैं, जो मैतेई समुदाय को नहीं मिलती। ‘लैंड रिफॉर्म एक्ट’ की वजह से मैतेई समुदाय पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदकर बस नहीं हो सकता। जबकि जनजातियों पर पहाड़ी इलाके से घाटी में आकर बसने पर कोई रोक नहीं है। जिसके कारण दोनों समुदायों में मतभेद बढ़ गए।