चमत्कारी Maa Dhari Devi के मंदिर में तीन बार रुप बदलती है मूर्ति

यहां दिन में तीन बार रुप बदलती है मूर्ति, चमत्कारी है Maa Dhari Devi का मंदिर

Yogita Bisht
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DHARI DEVI धारी देवी

भारत में रहस्यमयी मंदिरों की कमी नहीं है और देवभूमि उत्तराखंड के मंदिर तो अपने आप में एक कहानी समेटे हुए हैं। ऐसा ही एक मंदिर है जहां कि मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। अइयाँ जानते हैं क्या है Dhari Devi Face Changes का रहस्य ?

Dhari Devi में दिन में तीन बार रुप बदलती है मूर्ति

अलकनंदा नदी के बीचों-बीच स्थित है मां धारी का ये भव्य मंदिर जो देखने में जितना मनोरम है उतनी ही इसकी मान्यता भी है। बारह महीने भक्तों से भरा रहने वाला ये धाम उत्तराखंड के पौड़ी जिले के श्रीनगर से करीब चौदह किमी की दूरी पर स्थित है। यहां माता रानी की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। इन्हें उत्तराखंड की रक्षक देवी भी कहा जाता है।

कौन है मां धारी देवी ?

मां धारी को लेकर पहाड़ों में काफी किवदंतियां प्रचलित है। जिनमें से सबसे प्रचलित किंवदंती के अनुसार धारी देवी सात भाईयों की एक अकेली बहन थी। जो बचपन से ही अपने भाईयों से बहुत प्यार करती थी और उनकी खूब सेवा किया करती थी। लेकिन मां धारी के सातों भाई उनसे उतनी ही नफरत करते थे। वो भी इसलिए क्योंकि उनका रंग सांवला था।

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समय किसी तरह बीत रहा था कि एक दिन धारी देवी के सातों भाईयों को ये पता चला कि धारी देवी के ग्रह उन सातों के लिए अच्छे नहीं हैं। फिर क्या था धारी देवी के प्रति उनकी नफरत की आग को घी मिल गया और ज्वाला की लपटों की तरह उनकी नफरत धारी देवी के लिए बढ़ती चली गई।

समय बीता धारी देवी बड़ी होने लगी। जब धारी देवी तेरह साल की हुई तब उसके सात भाईयों में से पांच भाईयों की मृत्यु हो गई। बचे थे केवल दो विवाहित भाई और वो दोनों अपने बाकी भाईयों की मौत का जिम्मेदार धारी देवी को ही मानने लगे। दोनों भाई धारी देवी को रास्ते से हटाने की युक्तियां खोजने लगे। जिसमें उनकी पत्नियों ने भी उनकी पूरी सहायता करती थी।

अलकनंदा में बहता सिर पहुंचा था धारी नामक जगह पर

एक रात जब धारी देवी सो रही थी तो उनके दोनों भाईयों ने मिलकर उनके सिर को धड़ से अलग कर अलकनंदा नदी में बहा दिया। धारी देवी का सिर नदी में बहते-बहते धारी नाम की जगह पर पहुंचा, जहां एक आदमी कपड़े धो रहा था। धारी देवी का सिर देख कर उस आदमी को लगा कि कोई लड़की बह रही है। वो इस असमंजस में पड़ गया कि आखिर में इसे बचाऊं तो बचाऊं कैसे ?

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अलकनंदा नदी भी पूरे उफान पर थी। तभी उस सिर से आवाज आई तू चिंता मत कर तू मुझे बचा मैं तुझे आश्वासन देती हूं कि जहां-जहां तू कदम रखेगा वहां-वहां सीढ़ी बन जाएगी। ये बात सही साबित हुई और चमत्कार हो गया जिस-जिस जगह उस आदमी ने पैर रखे वहां-वहां पर सीढ़ी बनती गई।

जैसे ही उसने माँ धारी का सिर उठाया वो हक्का-बक्का रह गया और सोचने लगा कि ये कटा हुआ सिर मुझे आवाज़ कैसे दे रहा था? वो ये सब सोच ही रहा था कि अचानक कटा हुआ सिर फिर बोल पड़ा “डर मत मैं देवी स्वरुप में हूं तू मुझे किसी पवित्र जगह पर स्थापित कर दे.”।

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जिसके बाद उस व्यक्ति ने उस कटे हुए सिर को एक पत्थर पर स्थापित कर दिया। फिर उस कटे हुए सिर ने अपनी सारी आपबीती बताई और वो कटा हुआ सिर एक शिला में परिवर्तित हो गया।
तभी से वहां उस शिला की पूजा होने लगी और उस जगह पर एक सुन्दर मंदिर का निर्माण भी करवाया गया। जिसे आज धारी देवी के नाम से जाना जाता है।

धड़ की पूजा होती है रुद्रप्रयाग के कालीमठ में

उस कन्या का धड़ वाला भाग रुद्रप्रयाग के कालीमठ जा पहुंचा। जहां मां मैठाणी के नाम से आज भी उसकी पूजा होती है। ये भी कहा जाता है कि एक बार भीषण बाढ़ में माता की मूर्ति बह कर धारी गांव के पास एक चट्टान से टकराकर रुक गई थी। लोग बताते हैं कि उस मूर्ति से एक आवाज़ आई जिसने गांव वालों को उस जगह पर मूर्ति स्थापित करने के निर्देश दिए और इसके बाद गांव वालों ने मिल कर वहां एक मंदिर का निर्माण कराया।

आदि गुरु शंकराचार्य और धारी देवी

माँ धारी देवी की कहानी आदि गुरु शंकराचार्य से भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है जब नौवीं-दसवीं शताब्दी में शंकराचार्य उत्तराखंड आए तो उन्होंने सूरजकुंड नाम की जगह से मां धारी देवी की मूर्ति निकाल कर धारी गांव में स्थापित कर दिया था। आदि गुरु शंकराचार्य माता की पूजा की जिम्मेदारी स्थानीय पुजारियों को सौंप दी। मंदिर के पुजारियों के अनुसार माँ धारी की ये मूर्ति इस मंदिर में द्वापर युग से है और यहां मां काली शांत मुद्रा में स्थापित हैं।

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क्या है Maa Dhari Devi का रहस्य ?

कहा जाता है कि मां धारी की ये मूर्ति एक दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। सुबह-सुबह ये छोटी सी मासूम कन्या में परिवर्तित हो जाती हैं। दिन में सुन्दर सी युवती और शाम में मां धारी वृद्धा रूप में दिखाई देती है। मां धारी की प्रसिद्धि अनंत काल से चली आ रही है।

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कहा जाता है कि पवार वंश के राजा अजयपाल ने 52 गढ़ों को हराकर गढ़वाल की स्थापना मां धारी के आशीर्वाद से ही की थी। इसके अलावा आदि गुरु शंकराचार्य जब मृत्यु के बेहद करीब थे कोई भी वैद्य या हकीम उन्हें ठीक नहीं कर पाए थे तो मां धारी उनको मौत के मुंह से खींच लाई। कहा जाता है कि वो धारी देवी की शरण में आकर चमत्कारी तरीके से खुद ब खुद ठीक हो गए थे।

उत्तराखंड की रक्षक देवी हैं धारी देवी

माना जाता है कि धारी देवी चारों धामों की रक्षा करती है। इसके साथ ही इन्हें उत्तराखंड की रक्षक देवी भी कहा जाता है। हर साल नवरात्रों में यहां माता रानी की विशेष पूजा की जाती है। दूर-दूर से लोग यहां मां धारी देवी का आशीर्वाद लेने के लिए पहुंचते हैं। कहा जाता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है।

माँ धारी देवी का क्रोध

16 जून 2013 ये तारीख शायद ही किसी उत्तराखंडी को याद न हो। इसी दिन शाम आठ बजे केदारनाथ में भयानक आपदा आई थी। स्थानीय लोग इस आपदा को मां धारी के क्रोध का परिणाम मानते हैं। कहा जाता है जब सरकार द्वारा 303 मेगावाट की जल विद्युत परियोजना का रास्ता बनवाने के लिए मां धारी देवी को उनके मूल स्थान से स्थानांतरित किया गया तो इससे माँ धारी गुस्सा हो गई और उनके क्रोध के चलते ही केदारनाथ में भीषण बाढ़ आ गई।

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स्थानीय लोगों के मुताबिक आपदा आने के दो घंटे पहले तक मौसम बिल्कुल ठीक था। लेकिन जैसे ही मां धारी देवी के मंदिर को विस्थापित किया गया उसके कुछ समय बाद केदारनाथ में बाढ़ आ गई। लोगों का मानना है कि मां धारी देवी उत्तराखंड की रक्षक देवी हैं उनके गुस्से के कारण ही ये आपदा आई थी।

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योगिता बिष्ट उत्तराखंड की युवा पत्रकार हैं और राजनीतिक और सामाजिक हलचलों पर पैनी नजर रखती हैंं। योगिता को डिजिटल मीडिया में कंटेंट क्रिएशन का खासा अनुभव है।