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Uttarakhand Election 2024 : यूकेडी ने राज्य गठन में अहम भूमिका निभाई, फिर भी कभी सत्ता में नहीं आ पाई

Yogita Bisht
4 Min Read
यूकेडी

उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने के लिए एक लंबे अरसे तक लोगों ने आंदोलन किया। इस आंदोलन में यूकेडी यानी उत्तराखंड क्रांति दल ने अहम भूमिका निभाई। लेकिन इसके बावजूद भी यूकेडी कभी सत्ता में नहीं आई। देश के कई राज्यों में क्षेत्रीय दल सत्ता में रहे हैं लेकिन इसके उलट उत्तराखंड में यूकेडी हाशिये पर है। आलम ये है कि अपेक्षित मत प्रतिशत नहीं मिलने के कारण अपना चुनाव निशान कुर्सी भी गंवा बैठा है।

25 जुलाई, 1979 को अस्तित्व में आया था यूकेडी

अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय उत्तराखंड क्रांति दल 25 जुलाई, 1979 को अस्तित्व में आया। इसके बाद यूकेडी ने राज्य निर्माण आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। राज्य गठन के बाद थोड़ा कम लेकिन जनता ने दल को अपना समर्थन दिया। 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में यूकेडी ने चार सीटों पर जीत दर्ज की। लेकिन इसके बाद यूकेडी धरातल पर अपनी पकड़ को खोता गया और आज इस हाल में है कि उसके पास अपना चुनाव चिन्ह तक नहीं है।

2022 में 1.1 प्रतिशत था यूकेडी का मत प्रतिशत

जहां एक ओर साल 2002 में उत्तराखंड क्रांकि दल का मत प्रतिशत साल 2002 में 5.5 प्रतिशत था तो वहीं अब वो साल 2022 में घटकर 1.1 प्रतिशत पर आ गया है। बात करें साल 2007 की तो यूकेडी ने तब विधानसभा में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी भाजपा को समर्थन दिया था और इसके साथ ही वो सरकार में शामिल हो गया। इसके बाद जब साल 2012 में विधानसभा चुनाव हुए तो यूकेडी ने अपना समर्थन कांग्रेस को दे दिया और एक बार फिर सरकार का हिस्सा बन गया।

दल मजबूत करने के बजाय नेताओं ने व्यक्तिगत हितों को दी तरजीह

उत्तराखंड क्रांति दल के सत्ता में ना आ पाने और आज हाशिये पर पहुंचने का प्रमुख कारण ये है कि दल के नेताओं ने दल को मजबूत बनाने के बजाय अपने व्यक्तिगत हितों की ज्यादा चिंता की। साल 2012 में कांग्रेस को समर्थन देकर प्रीतम पंवार ने मंत्री पद संभाला। इन परिस्थितियों में जरूरत इसकी थी कि दल को मजबूत किया जाए लेकिन नेताओं ने व्यक्तिगत हितों को तरजीह दी। इसके परिणामस्वरूप राजनीतिक अनुभवहीनता और शीर्ष नेतृत्व की महत्वाकांक्षाओं ने उत्तराखंड के बड़े क्षेत्रीय दल और उसकी ताकत को रसातल में धकेल दिया।

इसके बाद मानों दल में अलग होने की होड़ सी मच गई। दल कई धड़ों में बंट गया। इस अंदरूनी कलह को दूर करने में नेताओं को पांच साल लग गए। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। साल 2017 में शीर्ष नेताओं ने सुलह की और विभिन्न गुटों को फिर से एक बना लिया। लेकिन अब तक दल अपनी लोकप्रियता और जनता का साथ खो चुका था। साल 2017 में हुए चुनावों में यूकेडी को केवल 0.7 प्रतिशत वोट मिल पाए। इसके बाद साल 2022 में तो हाल ये हो गया कि दल को अपने चुनाव चिन्ह से भी हाथ धोना पड़ा।

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योगिता बिष्ट उत्तराखंड की युवा पत्रकार हैं और राजनीतिक और सामाजिक हलचलों पर पैनी नजर रखती हैंं। योगिता को डिजिटल मीडिया में कंटेंट क्रिएशन का खासा अनुभव है।