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कौन थे Karpoori Thakur? घर, जमीन, गाड़ी कुछ नहीं कमाया लेकिन लोगों के हीरो बने

Renu Upreti
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Karpoori Thakur
Karpoori Thakur

भारतीय राजनीति में ऐसे-ऐसे लोग हुए हैं, जो आज भी जनता के लिए मिसाल हैं। इन्हीं में से एक थे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री (Karpoori Thakur)कर्पूरी ठाकुर जिन्हें मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। कर्पूरी ठाकुर एक ऐसे नेता थे जो बाइक में बैठकर भी अपने कई काम निपटा आते थे। इसी बाइक में बैठकर एक बार वो विदेशी पत्रकारों से मिलने भी गए। उन्हें लोग जननायक के रुप में याद करते हैं। आइये जानतें हैं उनकी जिंदगी के बारे में……

आपातकाल में इंदिरा गांधी करना चाहती थी गिरफ्तार

जिस जननायक ने आज से 35 साल पहले अलविदा कह दिया था उन्हें अब भारत सरकार भारत रत्न देने जा रही है। Kapoori Thakur का जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौझिया गांव में हुआ था। पटना से 1940 में उन्होंने मैट्रिक परीक्षा पास की और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। कर्पूरी ठाकुर ने आचार्य नरेंद्र देव के साथ चलना पसंद किया। इसके बाद उन्होनें समाजवाद का रास्ता चुना और 1942 में गांधी के असहयोग आंदलोन में हिस्सा लिया। इसके चलते उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। साल 1945 में जेल से बाहर आने के बाद कर्पूरी ठाकुर धीरे-धीरे समाजवादी आंदोलन का चेहरा बन गए। जिसका मकसद अंग्रेजों से आजादी के साथ-साथ समाज के भीतर पनपे जातीय व सामाजिक भेदभाव को दूर करने का था ताकि दलित, पिछड़े और वंचित को भी एक सम्मान की जिंदगी जीने का हक मिल सके। एक ऐसा समय भी आया था जब आपातकाल में इंदिरा गांधी उन्हें गिरफ्तार करना चाहती थी लेकिन कामयाब नहीं हो सकी।

Karpoori Thakur का राजनीतिक सफर

कर्पूरी ठाकुर ने सन् 1952 में पहली बार विधानसभा का चुनाव जीता और महज 28 साल की उम्र में विधायक बनें। बिहार की सत्ता में 1970 से 1979 के बीच उन्हें वे दो बार सीएम बनें। 22 दिसंबर 1970 में वो पहली बार सीएम बने तब उनकी सरकार 163 दिन चलीं। 1977 में जनता पार्टी की जीत के बाद वे फिर सीएम बने पर तब भी दो साल से कम समय तक उनका कार्यकाल रहा।

घर, गाड़ी और जमीन कुछ भी नहीं

Karpoori Thakur बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता भी रहे। इसके बावजूद घर, गाड़ी और जमीन उनके पास कुछ भी नहीं था। राजनीति की इसी ईमानदारी ने उन्हें जननायक बनाया। वो राजनीति में परिवार वाद के काफी विरोधी थे। जब तक वो जीवित थे उनका परिवार का कोई भी सदस्य राजनीति में नहीं आया। 17 फरवरी 1988 को उन्होंने संसार को अलविदा कह दिया, तब उनकी उम्र सिर्फ 64 साल थी।

Karpoori Thakur के वो फैसले जो मिसाल बने

  • पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया।
  • पढ़ाई में अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया।
  • मैट्रिक तक पढ़ाई को मुफ्त किया।
  • बिहार में उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्जी दिया।
  • अगड़ों को भी 3 प्रतिशत का दर्जा दिया।
  • गैर लाभकारी जमीन पर मालगुजारी टैक्स को बंद किया।
  • मुख्यमंत्री बनते ही उन्होनें फोर्थक्लास वर्कर पर लिफ्ट का यूज करने पर रोक हटाई।
  • आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों और महिलाओं लिए आरक्षण का दिया।
Karpoori Thakur
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