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मुख्तार अंसारी ने पहली बार कब किया अपराध? कैसे बना खौफ का दूसरा नाम? जानें यहां

Renu Upreti
10 Min Read
When did Mukhtar Ansari enter the world of crime?
When did Mukhtar Ansari enter the world of crime?

माफिया मुख्तार अंसारी का बांदा जेल में निधन हो गया है। 30 मार्च को गाजीपुर में उसे सुपुर्द-ए-खाक किया गया। पर क्या आप जानते हैं कि आखिर मुख्तार कैसे माफिया बना और कैसे उसने अपराध की दुनिया में कदम रखा और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज भले ही मुख्तार को माफिया की पहतान मिली हो लेकिन उसके परिवार की पहचान एक प्रतिष्ठित राजनीतिक खानदान के तौर पर थी। आइये जानते हैं मुख्तार ने कैसे अपराध की दुनिया में कदम रखा।

गाजीपुर में हुआ मुख्तार का जन्म

गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद में 3 जून 1963 को जन्मे मुख्तार के पिता का नाम सुबाहउल्लाह अंसारी और मां का नाम बेगम राबिया था। गाजीपुर में मुख्तार अंसारी के परिवार की पहचान एक प्रतिष्ठित राजनीतिक खानदान के तौर पर थी। मुख्तार अंसारी के दादा थे डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी। डाक्टर मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता सेनानी थे। देश को आजाद कराने के लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी।

मुख्तार अंसारी के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को 1947  में हुई जंग में शहीद हो गए। इस शहादत के लिए उन्हे महावीर चक्र दिया गया था। मुख्तार अंसारी के पिता सुबहानउल्लाह अंसारी गाजीपुर की राजनीति में खासे सक्रिय रहे थे। उनकी छवि साफ-सुथरी रही और स्थानीय स्तर पर वो जनाधार वाले नेता माने जाते थे। वहीं भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी रिश्ते में मुख्तार अंसारी के चाचा लगते हैं।

1988 के दशक में पहली बार केस दर्ज

बड़ी मूंछों वाला मुख्तार पूर्वांचल में अपना रसूख कायम करना चाहता था। यही महत्वकांक्षा उसे अपराध की ओर ले गई। पुलिस फाइलों में पहली बार मुख्तार अंसारी का नाम 1988 के दशक में आया। दरअसल 25 अक्टूबर 1988 को आजमगढ़ के ढकवा के संजय प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना सिंह ने मुख्तार अंसारी के खिलाफ हत्‍या की कोशिश का मुकदमा दर्ज कराया। यही वो पहला आरोप था जब मुख्तार का नाम पुलिस फाइलों में आया। अपराध की दुनिया की ओर कदम बढ़ा चुके मुख्तार ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा। मुख्तार ने मखानू सिंह का गैंग ज्वाइन किया। मखानू सिंह गैंग की मदद से मुख्तार ने साधू सिंह के साथ मिलकर मंडी परिषद के ठेकेदार सच्चिदानंद राय को मार दिया। दरअसल सच्चिदानंद राय ने मुख्तार के पिता से किसी बात को लेकर विवाद हो गया था। इस विवाद में सच्चिदानंद राय ने मुख्तार के पिता को भरे बाजार का जलील कर दिया।

सच्चिदानंद राय की हत्या ने बनाया चर्चित

ये बात जब मुख्तार को पता चली तो मुख्तार ने पिता का हत्या का बदला लेने की ठान ली। मुख्तार के लिए सच्चिदानंद की हत्या करना आसान नहीं था क्योंकि राय लॉबी खासी मजबूत थी। लिहाजा मुख्तार को मखानू सिंह गैंग का साथ लेना पड़ा। पिता के अपमान का बदला लेने से शुरु हुई मुख्तार की अपराध कथा फिर रुकी नहीं। इसके बाद यूपी पुलिस के एक कान्सटेबल राजेंद्र सिंह को भी मार दिया। मुख्तार का निशान अचूक था। कहते हैं कि वो दो दीवारों के बीच सुराख बना कर भी गोली चला सकता था। सच्चिदानंद राय और राजेंद्र सिंह की हत्या में नाम आने के बाद अब पुलिस मुख्तार के पीछे लग चुकी थी। इधर सच्चिदानंद राय की हत्या के बाद मुख्तार का नाम पूर्वांचल की दुनिया में चर्चित हो चुका था।

बंबइया फिल्म की तरह बनाया हत्या का प्लान

दरअसल मुख्तार के गुरु मखानू सिंह ने अपने दुश्मन रंजीत सिंह की हत्या का आदेश मुख्तार को दिया। रंजीत बड़ा दबंग था और उसकी हत्या करना आसान नहीं था। फिर भी मुख्तार ने अपने गुरू का आदेश माना और रंजीत की हत्या की तैयारी कर ली। इसके लिए मुख्तार ने जो प्लान बनाया वो किसी बंबइया फिल्म जैसा था। मुख्तार ने रंजीत सिंह के घर के सामने रहने वाले राजू मल्लाह नाम के व्यक्ति से दोस्ती कर ली। राजू मल्लाह और रंजीत सिंह के घर की दीवारें आमने सामने थीं। मुख्तार ने राजू मल्लाह के घर की दीवार में और रंजीत सिंह के घर की दीवार में आमने सामने सुराख कराया। ये सुराख कुछ यूं किया गया कि राजू मल्लाह के घर में बैठ कर रंजीत सिंह के आंगन में देखा जा सके। एक दिन रंजीत सिंह अपने आंगन में बैठा था। मुख्तार ने राजू मल्लाह के घर की दीवार के सुराख से रंजीत पर गोली चला दी। मुख्तार का निशाना ऐसा था कि दोनों दीवारों की सुराखों से होते हुए बंदूक की गोली रंजीत सिंह के सीने में जा लगी और उसकी मौत हो गई।

मुख्तार और बृजेश गैंग में अदावत शुरु

रंजीत सिंह की हत्या से हंगामा मच गया। उधर मुख्तार के निशाने की कहानियां सुनाई जाने लगीं। जल्द ही मुख्तार ने अपना गैंग बना लिया और संगठित अपराध की दुनिया में कदम रख दिया। हत्या, अपहरण, फिरौती, रंगदारी, जमीनों पर जबरन कब्जा जैसे अपराध ही अब मुख्तार का पेशा बन गए। इधर राजनीति भी चलती रही। मुख्तार को पता था कि अपराधों पर पर्दा डालने के लिए राजनीति की मदद मिलती रहेगी तो जिंदगी आसान रहेगी। उधर मुख्तार के दुश्मन भी बनने लगे। मुख्तार के दुश्मनों में जो सबसे पहला नाम था वो था बृजेश सिंह का। बृजेश सिंह ने कांस्टेबल राजेंद्र सिंह की हत्या का बदला लेने के लिए मुख्तार के करीबी साधू सिंह को मौत के घाट उतार दिया। यहीं से मुख्तार और बृजेश गैंग में अदावत शुरु हुई।

जब मुख्तार ने बनाया केएन राय की हत्या का प्लान

मुख्तार और बृजेश दोनों ही गाजीपुर, मऊ, घोसी, बनारस, चंदौली जैसी जगहों में अपना दबदबा कायम करने में लगे। हत्याएं, अपहरण जैसी वारदातों को अंजाम दिया जा रहा था। इसी बीच साल 2007 में मुख्तार के बड़े भाई मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट से चुनाव में खड़े हुए। उसी सीट से बीजेपी के टिकट पर कृष्णानंद राय भी खड़े हुए। बताते हैं कि केएन राय को बृजेश गैंग का सपोर्ट था। इस चुनाव में मुख्तार के भाई हार गए और कृष्णानंद राय जीत गए। भाई की ये हार मुख्तार को नागवार गुजरी। उसने केएन राय की हत्या का मन बना लिया।

29 नवंबर 2005 को कृष्णानंद राय गाजीपुर में ही एक क्रिकेट मैच का उद्घाटन कर वापस अपने गांव गोडउर लौट रहे थे। इसी दौरान मुख्तार के गुर्गों ने बसनियां चट्टी इलाके में कृष्णानंद राय की कार पर हमला कर दिया। इस हमले की कमान मुख्तार के करीबी मुन्ना बजरंगी के हाथों में थी। मुन्ना बजरंगी ने अपने हाथ में एके 47 ले रखी थी। उसी एके 47 से कृष्णानंद राय पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं गईं। कुल 500 राउंड गोलियां चलीं। ये हमला इतनी तेजी से हुआ कि केएन राय के गनर को हिलने तक का मौका नहीं मिला और उसका अंगूठा उसकी एलएमजी के ट्रिगर पर ही कट कर चिपक गया। पोस्टमार्टम के बाद केएन राय के शरीर से 69 गोलियां निकाली गईं।

हत्या के बाद काटी उसकी चोटी

कृष्णानंद राय की हत्या से जुड़ा एक और किस्सा आपको बताते हैं। दरअसल कृष्णानंद राय चोटी रखते थे। मुख्तार ने अपने गुर्गों को निर्देश दिया था कि केएन राय की हत्या के बाद उसकी चोटी काट कर ले आएं।कृष्णानंद राय की हत्या में शामिल मुख्तार गैंग के हनुमान पांडे उर्फ राकेश ने अपने सरगना के आदेश को बखूबी निभाया और हत्या के बाद कृष्णानंद राय की हत्या के बाद उनकी चोटी काट ली और मुख्तार को सौंपी। संभवत देश में पहली बार गैंगवार में एके 47 का प्रयोग हुआ था। इस हत्या के बाद सनसनी मच गई। मुख्तार अब जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह बन चुका था। उसका खौफ ऐसा कि क्या नेता, क्या अफसर सभी कांपते थे। मुख्तार काली रंग की बुलेट प्रूफ की गाड़ियों में घूमता। हर गाड़ी का नंबर सात सौ छियासी। मुख्तार पूर्वांचल की दुनिया नें खौफ का दूसरा नाम हो चुका था। 

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