Big News : Uttarakhand Election : जब सियासी मैदान में हार गए 'बोलंदा बद्री', टिहरी सीट से जुड़ा है चुनावी किस्सा - Khabar Uttarakhand - Latest Uttarakhand News In Hindi, उत्तराखंड समाचार

Uttarakhand Election : जब सियासी मैदान में हार गए ‘बोलंदा बद्री’, टिहरी सीट से जुड़ा है चुनावी किस्सा

Yogita Bisht
4 Min Read
'बोलंदा बद्री'

टिहरी सीट पर लोकसभा चुनाव अलग ही महत्व रहा है और ये महत्व इसलिए है क्योंकि इस सीट से राजपरिवार का गहरा नाता रहा है। गढ़वाल के राजा को ‘बोलंदा बद्री’ कहा जाता है। इस सीट से टिहरी राजपरिवार से जिसने भी चुनाव लड़ा वो जीता। लेकिन एक बार कुछ ऐसा हुआ जब टिहरी राजपरिवार का तिलिस्म भी टूट गया था और बोलंदा बद्री सियासी मैदान में हार गए थे।

जब सियासी मैदान में हार गए ‘बोलंदा बद्री’

गढ़वाल में कहा जाता है कि राजा ‘बोलंदा बद्री’ है यानी कि राजा बोलते हुए बद्रीनाथ हैं। इसलिए आजादी के बाद जब भी चुनाव में राजपरिवार से कोई उम्मीदावर बना वो जीता। लेकिन एक बार ऐसा हुआ कि जब ‘बोलंदा बद्री’ सियासी मैदान में हार गए। ये राजनीतिक घटनाओं का एक चौंकाने वाला मोड़ था।

ये बात है साल 1971 की जब टिहरी गढ़वाल के महाराजा मानवेंद्र शाह को बतौर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे। लेकिन उन्हें कांग्रेस उम्मीदवार और स्वतंत्रता सेनानी परिपूर्णानंद पैन्यूली के हाथों हार का सामना करना पड़ा।

लगातार तीन बार जीते थे मानवेंद्र शाह

बता दें कि महाराजा मानवेंद्र शाह 1957, 1962 और 1967 में लगातार तीन बार टिहरी गढ़वाल लोकसभा सीट से जीते थे। उन्होंने खुद को राजनीतिक परिदृश्य में एक मजबूत ताकत के रूप में स्थापित किया था। लेकिन साल 1971 में पैन्यूली के हाथों उनकी हार लोगों के लिए आश्चर्य की बात थी। लोग महाराजा शाह को चुनावों में विजयी होते हुए देखने के आदी हो गए थे। कई लोग तो उन्हें अपराजेय तक मानते थे। लेकिन इस हार ने उन्हें इस धारणा को गलत साबित कर दिया कि शाह अपराजेय नहीं हैं।

”बोलंदा बदरीनाथ कभी नहीं हारते” की धारणा भी टूटी

जहां एक ओर पैन्यूली की जीत और शाह की हार से ये साबित हुआ कि शाह अपराजेय नहीं हैं। तो वहीं दूसरी ओर ये धारणा भी टूट गई कि ”बोलंदा बदरीनाथ कभी नहीं हारते”। इसके साथ ही टिहरी सीट पर पैन्यूली की जीत ने साफ कर दिया कि कोई भी चुनावी हार से अछूता नहीं है। चाहे वो कोई कितना भी अनुभवी या लोकप्रिय क्यों न हों। पैन्यूली की जीत उनके राजनीतिक करियर में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था कियोंकि उन्होंने मानवेंद्र शाह जैसे प्रभावशाली व्यक्ति को हराने में सफल रहे।

क्यों कहा जाता है राजा को ‘बोलंदा बद्री’ ?

आपको बता दें कि टिहरी के राजा को गढ़वाल के लोग भगवान बद्रीनाथ की तरह मानते थे। ऐसा कहा जाता है कि टिहरी रियासत की गद्दी पर बैठे राजा बोलते हुए बद्रीनाथ हैं। उन्हें भगवान विष्णु का प्रतिनिधि माना जाता है। टिहरी राजवंश के पहले राजा सुदर्शन शाह को “बोलांदा बद्रीश” के नाम से भी जाना जाता था। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त भगवान बद्री विशाल के दर्शन करने नहीं पहुंच पाते थे, राजा के दर्शन मात्र से उन्हें धाम के दर्शन के समान पुण्य मिल जाता था।

Share This Article
Follow:
योगिता बिष्ट उत्तराखंड की युवा पत्रकार हैं और राजनीतिक और सामाजिक हलचलों पर पैनी नजर रखती हैंं। योगिता को डिजिटल मीडिया में कंटेंट क्रिएशन का खासा अनुभव है।