National : क्या है अमेठी सीट का इतिहास? 25 साल बाद चुनाव में क्यों नहीं उतरा गांधी परिवार का सदस्य? जानें यहां - Khabar Uttarakhand - Latest Uttarakhand News In Hindi, उत्तराखंड समाचार

क्या है अमेठी सीट का इतिहास? 25 साल बाद चुनाव में क्यों नहीं उतरा गांधी परिवार का सदस्य? जानें यहां

Renu Upreti
5 Min Read
What is the history of Amethi seat?
What is the history of Amethi seat?

अमेठी लोकसभी सीट को लेकर स्सपेंस खत्म हो गया है। कांग्रेस ने यहां से केएल शर्मा को प्रत्याशी बनाया है। वहीं राहुल गांधी को रायबरेली से उम्मीदवार बनाया गया है। दोनों ही सीटें गांधी परिवार का गढ़ मानी जाती है। लेकिन इस बार अमेठी से कोई भी गांधी परिवार का सदस्य चुनाव नहीं लड़ रहा है। साल 1998 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि गांधी परिवार का नहीं बल्कि कोई बाहर का कांग्रेस प्रत्याशी चुनावी मैदान में है। इस बार कांग्रेस ने केएल शर्मा पर भरोसा किया है।

केएल शर्मा पर क्यों किया कांग्रेस ने भरोसा?

बता दें कि केएल शर्मा जिनका पूरा नाम किशोरी लाल शर्मा है इन्हें गांधी परिवार का काफी करीबी माना जाता है। वह रायबरेली में सोनिया गांधी के प्रतिनिधि रह चुके हैं। केएल शर्मा को चुनाव प्रबंधन का भी लंबा अनुभव है। पंजाब के रहने वाले केएल शर्मा ने साल 1983 में उन्होनें पहली बार अमेठी में कदम रखा था, वह राजीव गांधी के साथ अमेठी आए थे। अमेठी के साथ-साथ किशोरी लाल का रिश्ता रायबरेली से भी काफी गहरा है। राजीव गांधी के साथ अमेठी आने के बाद से ही उन्होनें कांग्रेस के लिए काम किया है। साल 1991 में राजीव गांधी की मौत के बाद से किशोरी लाल का रिश्ता गांधी परिवार के साथ और भी ज्यादा मजबूत हो गया। राजीव गांधी की मौत के बाद अमेठी सीट से साल 1998 तक गांधी परिवार के किसी सदस्य ने चुनाव नहीं लड़ा इसके बावजूद केएल शर्मा ने वहां के बाकी कांग्रेस सांसदों के लिए काम किया।

क्या है अमेठी सीट का इतिहास?

पहले अमेठी सीट सुल्तानपुर साउथ संसदीय सीट का हिस्सा हुआ करती थी। इसके बाद सुल्तानपुर जिले की चार और प्रतापगढ़ की एक अठेहा विधानसभा को मिलाकर मुसाफिरखाना लोकसभा सीट का गठन हुआ, जिसका हिस्सा अमेठी हुआ करती थी। 1967 के लोकसभा चुनाव में पहली बार अमेठी सीट अस्तित्व में आई। पहली बार इस सीट पर कांग्रेस के विघाधर वायपेयी सांसद बने थे। इसके बाद 1972 मे वह दोबारा इस सीट से सांसद बने। 1977 के चुनाव में पहली बार गांधी परिवार के किसी सदस्य ने इस सीट से चुनाव लड़ा। तब कांग्रेस ने संजय गांधी को इस सीट पर चुनावी मैदान में उतारा था। हालांकि इमरजेंसी के कारण संजय गांधी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा और उनकी इस चुनाव में हार हुई और जनता पार्टी के रविन्द्र प्रताप सिंह यहां से सांसद चुने गए।

1980 में संजय गांधी की मृत्यु

1980 में संजय गांधी की मृत्यु हुई। बाद में इस सीट पर इंदिरा गांधी के बड़े बेटे राजीव गांधी ने चुनाव लड़ा और उन्हें जीत मिली। 1984 में एक बार फिर राजीव गांधी को इस सीट से दोबारा जीत मिली। इसी बीच इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई। इसके बाद राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने। इसके बाद 1984 में राजीव गांधी के पीएम बनने के बाद जब लोकसभा चुनाव हुए तो अमेठी से राजीव गांधी ने एक बार फिर पर्चा भरा। यहां संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी ने भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर पर्चा भरा। नेहरू और गांधी परिवार के बीच यहां सीधी टक्कर देखने को मिली। हालांकि इस चुनाव में मेनका गांधी को हार मिली। इसी सीट से राजीव गांधी 1989 में भी सांसद बने। हालांकि 1991 में उनकी हत्या कर दी गई। इसके बाद उपचुनाव में कांग्रेस के सतीश शर्मा सांसद बने। लेकिन बीजेपी के संजय सिंह ने उन्हें शिकस्त दे दी।

1999 में सोनिया गांधी बनी सांसद

इसके बाद 1999 के चुनाव में सोनिया गांधी इस सीट से सांसद बनी। फिर साल 2004 से लेकर 2009 और 2014 में कांग्रेस के राहुल गांधी को अमेठी से जीत मिली और वो सांसद रहे, लेकिन फिर साल 2019 में बीजेपी की स्मृति ईरानी ने उन्हें लोकसभा चुनाव में अमेठी सीट से हरा दिया। वहीं अब साल 2024 में बीजेपी से स्मृति ईरानी तो कांग्रेस से केएल शर्मा के बीच टक्कर देखने को मिलेगी।

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