देहरादून: राज्य में कोरोना का संकट गहराता जा रहा है। जिसका असर सरकार के कामकाज पर भी नजर आने लगा है। कोरोना संकट के बीच ही 23 सिंतबर से उत्तराखंड विधानसभा का सत्र भी आयोजित किया जाना है। सत्र की तैयारियां भी चल रही हैं। लेकिन, इस बीच कोरोना के कारण कुछ ऐसी स्थितियां सामने आ गई कि सत्र को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। सोशल मिडिया में इस तरह की बातें कही जा रही हैं कि सत्र को टाला जा सकता है। हालांकि सत्र को टालना सरकार के लिए फिलहाल असंभव नजर आ रहा है।
23 से 25 सितंबर तक विधानसभा सत्र
सरकार ने 23 से 25 सितंबर तक विधानसभा सत्र आहूत किया है। सत्र कराने में सबसे बड़ी जो समस्या आ रही है, वह सदन में सदस्यों के बैठने की व्यवस्था को लेकर है। सदन में कोरोना के नियमों के तहत बैठक व्यवस्था के लिए पर्याप्त जगह नहीं है। इतना ही नहीं सत्र के दौरान मीडिया गैलरी में पत्रकारों के लिए भी पर्याप्त स्थान कोरोना के नियमों के तहत नहीं होगा। यही सब दिक्कतें संकट खड़ा कर रही हैं।
अन्य विकल्पों पर भी विचार
हालांकि विधानसभा अध्यक्ष के बयानों के अनुसार सत्र आयोजित कराने के लिए कई अन्य विकल्पों पर भी विचार कर रहे हैं। इसमें वुर्चअल विधानसभा सत्र भी एक विकल्प है या फिर किसी बड़े स्थान पर सत्र को आयोजित कराया जाए, लेकिन इस विकल्प को लेकर भारी खर्च आड़े आ रहा है। इन्हीं दिक्कतों को देखते हुए अटकलें भी लगाई जा रही हैं कि सत्र होगा या नहीं। एक और संकट यह है कि संसदीय कार्यमंत्री के रूप में नामित किए गए कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक कोरोना की चपेट में हैं। कई विधायक भी कोरोना पाॅजिटिव हैं।
ये है संविधान की व्यवस्था
विधानसभाओं और संसद में संविधान की व्यवस्था के अनुसार सत्र आयोजित किए जाते हैं। विधानसभाओं के सत्र आयोजित करने को लेकर उत्तराखंड में उसी व्यवस्था के तहत सरकार मुश्किल में हैं। सरकार को संविधान के अनुच्छेद 174 के तहत विधानसभा का सत्र कराना अनिवार्य है। विधानसभा के दो सत्रों के बीच 6 महीने का अंतराल नहीं होना चाहिए। यही अंतर उत्तराखंड में सरकार के सामने खड़ा है। इसके चलते विधानसभा का सत्र काराना अनिवार्य है।
6 माह से ज्यादा समय नहीं होना चाहिए
उत्तराखंड में 25 मार्च को सत्र स्थगित हुआ था। नियमानुसार सरकार को सत्र 6 माह या 180 दिन से पहले करा लेना जरूरी है। दो सत्रों के बीच 6 माह से ज्यादा का समय नहीं होना चाहिए। नियमानुसार 25 सितंबर से पहले हर हाल में सत्र आयोजित कराना होगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो सरकार पर ही संवैधानिक रूप से संकट मंडराने लगेगा। सरकार के पास सत्र टालने का कोई विकल्प बचा नहीं है। ऐसे में हर हाल में सत्र आयोजित कराना ही होगा।