देहरादून: जंगलों की आग कई हेक्टेयर वन संपदा। अनगिनत वन्य जीवों। कई स्कूल और आवासीय भवनों को तबाह कर चुकी है। फायर सीजन में अब मात्र 15 दिन बचे हैं, लेकिन वन विभाग के अधिकारियों और वन मंत्री के बीच अब तक वनों की आग को लेकर कोई बैठक तक नहीं हुई। अंदाजा लगाया जा सकता है कि वन विभाग कितना संजीदा है। दूसरी ओर एसडीआरएफ है, जिनका काम आग बुझाने का नहीं, लेकिन धधकती आग से तबाह होते जंगलों को बचाने के लिए दिन-रात मुस्तैद है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वन विभाग किस काम का है…?
फायर सीजन शुरू होने से पहले वन विभाग फायर लाइन बनाने का दावा करता है। लेकिन, तस्वीरें कुछ और ही बयां कर रही हैं। एसडीआरएफ के जवान आग बुझाने के साथ ही बचाव के लिए जो कदम उठाए जाने चाहिए थे, वो भी कर रही है। चीड़ के जंगलों में चीड़ की पत्तियां यानि पिरूल आग को तेजी से फैलाने के लिए सबसे बड़ा कारण होता है। एसडीआरएफ आग के संभावित खतरों को भांपते हुए पिरूल को एक जगह पर कट्ठा कर खुद ही सुरक्षित ढंग से जलाने का काम कर रहा है। जबकि ये काम वन विभाग को करना चाहिए था।
फायर लाइन के नाम पर करोड़ों का बजट ठिकाने लगा दिया जाता है। बावजूद आग फायर लाइनों को हर बार क्रास कर जाती है। क्या सरकार को फायर लाइनों के नाम पर खर्च किए गए बजट की जांच नहीं करानी चाहिए। एसडीआरएफ को आग बुझाने के इंतजाम करने के लिए अलग से कोई बजट और सुविधाएं नहीं दी जाती हैं। उसके बाद भी एसडीआरएफ पूरी मुस्तैदी से आग पर काबू पाने में जुटी है।
वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों के पास वनों और वन्य जीवों की सुरक्षा के अलावा कोई दूसरा काम नहीं है। फिर भी वनों को नहीं बचा पा रहे हैं। एसडीएआरएफ के जवान आपदा से लेकर आग बुझाने तक, सड़क दुर्घटनाओं से लेकर बाढ़ नियंत्रण तक और आग बुझाने तक का काम भी कर रहे हैं। एसडीआरएफ वाकई शानदार काम कर रही है। पुलिस भी एसडीआरफ का पूरा साथ दे रही है। सरकार को वन विभाग के कामों की जरूर समीक्षा करनी चाहिए।