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Roopkund रहस्यमयी मौतों की पहेली, जहां आज भी मौजूद हैं सैकड़ों नर कंकाल

Yogita Bisht
9 Min Read
ROOPKUND रूपकुंड

उत्तराखंड के झीलों के शहर नैनीताल के बारे में तो आप जानते ही होंगे। अपनी खूबसूरती के कारण यहां की झीलें देशभर में मशहूर हैं। ऐसी ही मशहूर Roopkund झील भी है। क्या आपने कभी किसी ऐसी किसी जगह के बारे में सुना है जहां सैकड़ों लोगों के नर कंकाल एक साथ मौजूद हैं ? उत्तराखंड में एक ऐसी Roopkund Lake मौजूद है जो कि यहां मौजूद नर कंकालों और उनके रहस्य के कारण दुनियाभर में मशहूर है। इसके रहस्य को सुलझाने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक कोशिश कर चुके हैं लेकिन ये आज भी एक पहेली ही बनकर रह गई है।

Roopkund उत्तराखंड के चमोली जिले में है स्थित

उत्तराखंड के चमोली में त्रिशूल पर्वत की गोद में बसा है एक ऐसा रहस्यमयी कुंड जिसमें सैकड़ों की तादाद में नर कंकाल की मौजूदगी आज भी अपने होने की अनसुलझी गुत्थी के मौजूद हैं। जितनी खूबसूरत ये जगह है उतनी ही रहस्यमयी भी। आज तक Roopkund Lake में इतने नर कंकाल कहां से आए इस राज से पर्दा नहीं उठ पाया है।

Roopkund जिसे अब कंकाल झील के नाम से भी पुकारा जाने लगा है वो उत्तराखंड के चमोली जिले की हिम झील है। ये झील त्रिशूल और नंदाघुंगटी पर्वत की तलहटी में बनी है। ये कुंड अपने अंदर हजारों लोगों की मौत का राज समेटे हुए है। हैरान कर देने वाली बात ये है कि आखिर समुद्र तल से 5029 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस कुंड में इतने सारे नर कंकाल पहुंचे कैसे? और अगर पहुंचे भी तो इनके बारे में कोई जानकारी क्यों नहीं मिलती।

दुनिया के सामने ऐसे आई Roopkund Lake

सन 1942 में हरि किशन माधवल नाम के एक ब्रिटिश फोरेस्ट गार्ड ट्रैकिंग करते हुए एक कुंड के किनारे पहुंचे। उन्होंने देखा कि इस कुंड में सैकड़ों नर कंकाल हैं। जिसे देखकर वो और उनकी टीम हैरान हो गई। उन्हें इन कंकालों के कुंड में होने की कोई वजह तो समझ नहीं आई लेकिन बाद में उन्होंने अंदाज लगाया कि ये कंकाल सेकेंड वर्ल्ड वॉर के समय भारत में हिमालय के रास्ते घुसे जापानी सैनिकों के होंगे जो उस समय ब्रिटेन पर हमला करने के मकसद से हिमालय के रास्ते आए पर खराब मौसम के चलते यहीं दफन हो गए।

ROOPKUND

500 साल पुराने निकले झील में मौजूद नर कंकाल

जापानी सैनिकों वाली ये थ्योरी तब गलत साबित हुई जब जापान के हमले के डर से ब्रिटेन सरकार ने तुरंत इन नर कंकालों के टेस्ट के लिए साइंटिस्ट्स की एक टीम बुला ली। उस वक्त के वैज्ञानिकों की रिपोर्ट ने सबको हैरान कर दिया। शुरु में जो कंकाल सॉफ्ट टिश्यू और हेयर स्ट्रेंस की वजह से हाल फिलहाल के लग रहे थे वो रेडियो कार्बन डेटिंग में करीब 500 साल पुराने निकले

दरअसल बर्फ और ठंडे मौसम के चलते कंकालों में मौजूद सॉफ्ट टिश्यूज और हेयर स्ट्रेंस प्राकृतिक तरीके से प्रिजर्व हो गए थे। वैज्ञानिकों ने पाया कि कई नर कंकालों के स्‍कल यानी खोपड़ी के आगे के हिस्से में डिप्रेशन था यानी वो कुछ दबे हुए थे। कुछ स्कल्स के वर्टैक्स के पास गंभीर फ्रैक्चर भी थे जो किसी बड़ी सी गोल चीज़ के लगने के कारण हुए होंगे।

जापानी सैनिकों के नहीं थे तो किसके थे ये नर कंकाल

अब सवाल ये था कि अगर ये कंकाल जापानी सैनिकों के नहीं थे तो ये थे किसके? आखिर Roopkund में ऐसा क्या हुआ था ? धीरे-धीरे रूप कुंड का रहस्य गहराता गया और वैज्ञानिकों की नई नई थ्योरीज भी सामने आने लगी। Roopkund के नर कंकालों का रहस्य जानने के लिए उन पर वक्त वक्त पर कई टेस्ट किए गए पर कोई खास फायदा नहीं हुआ।

ROOPKUND

कुछ कहते हैं कि ये एक कब्रगाह है यहां महामारी ग्रस्त लोगों को दफनाया गया होगा और कुछ लोग मानते हैं कि ये मास सुसाइड है। रुपकुंड के खराब मौसम और हिमस्खलन को भी इसका जिम्मेदार बताया गया। नेशनल जियोग्राफिक की रिपोर्ट के मुताबिक इन नर कंकालों के स्‍कल पर फ्रैक्चर के अलावा इनके किसी भी पार्ट में कोई और चोट के निशान नहीं थे।

इसमें बच्चों के और महिलाओं के कंकाल भी थे। इसके साथ ही टीम को चूड़ियां, अंगूठियां और जूते मिले। जापानी सिपाहियों के साथ ही कब्रगाह वाली थ्योरी भी तब फेल हो गई जब सामने आया कि यहां मौजूद कंकालों की हेल्थ मौत से पहले तक बिल्कुल ठीक थी।

नंदा राजजात यात्रा और रूपकुंड (Roopkund)

कुछ लोगों का कहना है कि मां नंदा की नाराजगी का फल है रूपकुंड झील के ये कंकाल। किवदंतियों में कहा जाता है कि नंदा रात जात में एक बार कन्नौज नरेश जसधवल और उनकी पत्नी रानी बल्लभा अपने साथ सुरक्षा और मनोरंजन के लिए अपने दल-बल को लेकर आए जिससे मां नंदा नाराज हो गईं। मां नंदा की नाराजगी रुप कुंड में भारी बरसात के तौर पर सामने आई। कहते हैं कि ये बारिश इतनी तेज थी कि कन्नौज के राजा अपने दल-बल के साथ वहीं दफन हो गए।

ROOPKUND

इस किवदंती ये कड़िया जुड़ने लगी। जो गहने नेशनल जियोग्राफिक की टीम को मिले वो शायद उन्हीं लोगों के होंगे जो नंदा राजजात में शामिल हुए होंगे और जो कंकालों के स्‍कल के आगे के हिस्से में डिप्रेशन थे वो शायद कंधे में भारी लोड ले जाने के कारण बने होंगे। अब बात थी कि आखिर इन कंकालों के स्कल पर जो फ्रैक्चर थे वो कैसे बने और क्यों? क्योंकि इनके कंकाल पे कोई और चोट के निशान नहीं थे। रुप कुंड में पाए गए नर कंकालों के सिर पर फ्रैक्चर के कारण को एक नया तथ्य दिया गया Geographical location of Roopkund.

रुपकुंड में दफन लोगों में से कई थे ईस्ट मेडिटेरियन

साल 2019 में एक रिसर्च टीम ने Roopkund Lake के कंकालों पर टेस्ट किया। जिसके रिजल्ट ने सबको चौंका के रख दिया।इस रिपोर्ट ने अब तक की सारी थ्योरीज को गलत बता दिया। यहां मिले नर कंकालों में जो सबसे पुराने कंकाल थे और जो सबसे नए कंकाल थे उनमें तकरीबन 1000 साल का फासला था।

रिसर्चर्स ने रूप कुंड के इन कंकालों को दो ग्रुप्स में डिवाइड किया। सबसे पुराना ग्रुप 800 एडी के पास का था और ये लोग साउथ एशियन थे। ये तर्क समझ में भी आता था क्योंकि भारत साउथ एशिया में ही है। कंकालों का दूसरा ग्रुप 19 वीं सेंचुरी का था। ये ग्रुप ईस्ट मेडिटेरियन के लोगों का था और ये किसी और कॉटिनेंट से आए हुए थे।

ROOPKUND

अब सवाल ये था कि इतने लोग अचानक हिमालय में कहीं गायब हो गए तो इनका कहीं ना कहीं कोई ना कोई जिक्र तो होना चाहिए। लेकिन अफसोस कि इतनी कोशिशों के बाद भी इनके बारे में कहीं कोई भी साक्ष्य नहीं मिला। मानों ये लोग कभी एग्जिस्ट ही नहीं करते थे। रिसर्च में ये बात भी सामने आई कि जो ये नर कंकाल थे ये एक ही हादसे में नहीं मरे बल्कि ये सारे लोग अलग अलग हादसों का शिकार हुए हैं। बहुत सारी रिसर्च के बाद भी Roopkund दुनिया के लिए आज भी एक रहस्य ही बना हुआ है।

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योगिता बिष्ट उत्तराखंड की युवा पत्रकार हैं और राजनीतिक और सामाजिक हलचलों पर पैनी नजर रखती हैंं। योगिता को डिजिटल मीडिया में कंटेंट क्रिएशन का खासा अनुभव है।