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सर्वे में बड़ा खुलासा : इस खतरनाक वायरस की चपेट में 10 साल तक की उम्र के इतने बच्चे

Reporter Khabar Uttarakhand
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नई दिल्ली : दुनिया और भारत में कोरोना का संकट फिलहाल दूर होता नजर यहीं आ रहा है।  देश में किये गए एक सर्वे में बड़ा खुलासा हुआ है।  इसके अनुसार अगस्त के महीने तक 10 वर्ष से ज्यादा उम्र का हर 15 में से एक व्यक्ति (6.6 फीसदी) Sars-Cov-2 वायरस के संपर्क में आ चुका है। Sars-Cov-2 वायरस कोविड-19 (कोरोना वायरस) बीमारी का कारण बनता है। आईसीएमआर ने दूसरे सीरो सर्वे के आंकड़ों को  जानकारी दी है।

आईसीएमआर का पहला देशव्यापी सीरो सर्वेक्षण 11 मई और 4 जून के बीच किया गया था। इसमें कुल संक्रमण का प्रसार 0.73 फीसदी था। दूसरा सर्वेक्षण 17 अगस्त और 22 सितंबर के दौरान किया गया था। दूसरा सर्वे भी पहले सर्वेक्षण में शामिल किए गए 21 राज्यों में 70 जिलों के 700 गांवों और वार्डों में ही किया गया। 29,082 लोगों के खून के नमूने लिए गए थे। आयु वर्ग के अलावा दोनों सर्वेक्षणों में अन्य सभी मापदंडों को एक जैसा रखा गया है। पहले चरण में चयनित जनसंख्या 18 वर्ष और उससे अधिक थी, और दूसरे चरण में 10 साल और उससे ऊपर के लोगों के नमूने लिए गए थे।

आईसीएमआर के डायरेक्टर जनरल डॉ. बलराम भार्गव ने कहा, “हमने दूसरे सर्वेक्षण में आयु वर्ग को बदल कर 18 साल से 10 साल और उससे अधिक आयु कर दिया, क्योंकि कम उम्र के लोगों में भी संक्रमण देखा गया था। सीरो सर्वे से हमें वायरस एक्सपोजर के शिकार होने का संकेत देता है, भले ही आपको यह बीमारी हुई हो या नहीं।  आकड़ों के अनुसार शहरी स्लम (15.6 फीसदी) और गैर-स्लम (8.2 फीसदी) इलाकों में Sars-Cov-2 संक्रमण ग्रामीण क्षेत्रों (4.4 फीसदी) की तुलना में अधिक पाया गया। वहीं, वयस्कों में (18 वर्ष से अधिक आयु) 7.1 फीसदी से अधिक था।

नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने बताया, “यह दिखाया है कि आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी संक्रमण के लिहाज से अतिसंवेदनशील है, इसलिए कोविड-19 से बचाव के लिए उचित व्यवहार का पालन करना महत्वपूर्ण है जैसे कि मास्क पहनना, सामाजिक दूरी बनाए रखना और हाथ की स्वच्छता का पालन करना। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार के सीरो सर्वेक्षण मौजूदा तस्वीर पेश नहीं करते हैं। सफदरजंग अस्पताल में सामुदायिक चिकित्सा के अध्यक्ष डॉ. जुगल किशोर का कहना है, यह हमें वर्तमान स्थिति के बारे में नहीं बताता है और यही कारण है कि नीति-संबंधी फैसले लेने में यह वास्तव में फायदेमंद नहीं हो सकता है। हालांकि, शैक्षिक उद्देश्यों के लिए, अगर कोई भारत में कुछ समय बाद महामारी की ट्रेजेक्टरी (प्रक्षेपवक्र) का अध्ययन करना चाहता है, तो इससे मदद मिलेगी।

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