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राज्य गठन के बाद बदला उत्तराखंड का सियासी गणित, कांग्रेस लुढ़की और बढ़ गया भाजपा का दबदबा

Yogita Bisht
5 Min Read
सियासी गणित

उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद से उत्तराखंड का सियासी गणित बदला है। राज्य गठन से पहले यहां कांग्रेस का दबदबा हुआ करता था लेकिन राज्य गठन के बाद से भाजपा आगे चल रही है। अलग राज्य बनने के बाद से जहां बीजेपी लगातार मजबूत हुई है तो वहीं कांग्रेस लुढ़कती ही चली गई।

राज्य गठन के बाद बदला उत्तराखंड का सियासी गणित

उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद से उत्तराखंड में मतदान को लेकर भी एक बड़ा बदलाव आया है। लोकसभा चुनाव में भाजपा का वोट परसेंटेज लगातार बढ़ता ही जा रहा है। बीते दो लोकसभा चुनावों में भाजपा ने बंपर जीत हासिल की है। जबकि कांग्रेस का वोट परसेंटेज घटता ही जा रहा है। यहां तक कि पिछले चुनावों में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई। चुनावी इतिहास पर एक नजर डालें तो 3 लोकसभा चुनाव में भाजपा को बढ़त मिली। जबकि एक लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा का वोट परसेंटेज कम कर दिया था।

रोचक था साल 2004 का लोकसभा चुनाव

बात करें उत्तराखंड की सियासी गणित की तो साल 2004 का चुनाव सबसे रोचक था। साल 2004 के लोकसभा चुनावों में राज्य की 5 सीटों में से तीन सीटें भाजपा की डोली में तो एक सीट पर कांग्रेस और एक सीट पर समाजवादी पार्टी की झोली में गई थी। लेकिन भाजपा की 2004 की जीत का सिलसिला लगातार नहीं चला लेकिन भाजपा प्रदेश में मजबूत होती चली गई। जिसका परिणाम 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में देखने को मिला।

बता दें कि साल 2004 में भाजपा का वोट प्रतिशत 40.98 प्रतिशत, कांग्रेस का 38.31% और सपा का वोट परसेंटेज 7.93% था। साल 2004 में पौड़ी गढ़वाल से भाजपा के भुवन चंद्र खंडूड़ी, अल्मोड़ा से भाजपा के बची सिंह रावत, टिहरी गढ़वाल से भाजपा के मानवेंद्र शाह, नैनीताल से कांग्रेस के करण चंद सिंह बाबा और हरिद्वार आरक्षित सीट से समाजवादी पार्टी के राजेंद्र कुमार बॉडी सांसद चुने गए थे।

साल 2007 के उपचुनाव में मुकाबला हुआ जबरदस्त

साल 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद टिहरी संसदीय सीट पर तत्कालीन सांसद मानवेंद्र शाह की मृत्यु के बाद साल 2007 में उपचुनाव हुआ। इस उपचुनाव में रोचक मुकाबला हुआ। कांग्रेस ने विजय बहुगुणा को तो बीजेपी ने मानवेंद्र शाह के बेटे मनुजेंद्र शाह को मैदान में उतारा।

वहीं सांसद भुवन चंद्र खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाए जाने के कारण पौड़ी सीट भी खाली हो गई थी। इस सीट पर भी उपचुनाव कराए गए। पौड़ी से बीजेपी ने तेजपाल सिंह रावत तो कांग्रेस ने सतपाल महाराज को प्रत्याशी बनाया। टिहरी लोकसभा सीट से उपचुनाव में मनुजेंद्र शाह को कांग्रेस प्रत्याशी विजय बहुगुणा ने 22000 से अधिक के अंतर से हराया। जबकि पौड़ी सीट पर भी भाजपा के प्रत्याशी तेजपाल सिंह रावत ने कांग्रेस उम्मीदवार सतपाल महाराज को हराया था।

2009 में कांग्रेस आगे निकली लेकिन 2014 में पिछड़ गई

साल 2009 के लोकसभा चुनावों की बात करें तो भाजपा पांचों सीटों पर पिछड़ गई। प्रदेश की अल्मोड़ा सीट को छोड़तक बाकी चार सीटों पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस आगे निकल गई। 2009 के आम चुनावों में बीजेपी का वोट परसेंटेज जहां 33% हो गया था को वहीं कांग्रेस का वोट परसेंटेज 53.43 प्रतिशत हो गया। इस चुनाव नें कांग्रेस को 43.14 परसेंट वोटों से जीत मिली थी।

साल 2014 का चुनाव बीजेपी के लिए खास रहा। 16वें लोकसभा चुनाव में ‘मोदी लहर’ की बदौलत बीजेपी को उत्तराखंड में भी प्रचंड बहुमत मिला था। 2014 को लोकसभा चुनाव में बीजोपी को 55.09 प्रतिशत तो कांग्रेस को 34.4 प्रतिशत वोट मिले। साल 2019 में भी मोदी लहर के चलते बीजेपी ने उत्तराखंड में बंपर जीत हासिल की। 2019 में बीजेपी को 61.7 प्रतिशत मत तो कांग्रेस को 31.7 प्रतिशत वोट मिले।

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योगिता बिष्ट उत्तराखंड की युवा पत्रकार हैं और राजनीतिक और सामाजिक हलचलों पर पैनी नजर रखती हैंं। योगिता को डिजिटल मीडिया में कंटेंट क्रिएशन का खासा अनुभव है।