एसडीसी फाउंडेशन ने साल 2024 की पहली उत्तराखंड मासिक आपदा एवं दुर्घटना रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि जोशीमठ आपदा के एक साल बीते जाने के बाद भी एक दर्जन से भी ज्यादा परिवार आज भी राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं।
जोशीमठ में अब भी राहत शिविरों में रहने को मजबूर लोग
उदय की जनवरी 2024 की रिपोर्ट में जोशीमठ भू-धंसाव को एक बार फिर प्रमुखता दी गई है। यह भू-धंसाव एक वर्ष पहले जनवरी 2023 में शुरू हुआ था। घरों में दरारें आने के कारण कई परिवारों को अपने घर छोड़ने पड़े थे। 4 जनवरी 2023 को जोशीमठ के मारवाड़ी इलाके में जमीन से पानी फूटने के बाद शहर के कई हिस्सों में दरारें बढ़ गई थी।
सरकारी रिकॉर्ड बताते हैं कि जोशीमठ के नौ वार्डों में 868 निर्माणों में दरारें आ गईं, जबकि 181 इमारतों को असुरक्षित माना गया। रिपोर्ट के अनुसार एक साल बाद भी एक दर्जन से ज्यादा परिवार जिला प्रशासन द्वारा स्थानीय होटलों, गेस्ट हाउस और लॉज में बनाए गए राहत शिविरों में हैं।
कुछ लोगों क अब तक नहीं मिल पाया मुआवजा
कुछ लोगों को एकमुश्त मुआवजा मिला है लेकिन कई को अब तक कुछ नहीं मिला है। लोग इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि वे अपने असुरक्षित हो चुके घरों में वापस लौट पाएंगे या नहीं। जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को कम से कम प्रभावित लोगों को सूचित करना चाहिए जिससे वे योजना बना सके और अपने जीवन में आगे बढ़ सके।
रेल परियोजना के कारण सूखते जल स्रोत
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग परियोजना के पैकेज दो और तीन में लोगों को पानी की उपलब्धता को लेकर दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इन लोगों की समस्या का समाधान रेलवे विकास निगम द्वारा अब तक नहीं किया गया है।दोगी पट्टी के तीन दर्जन गांवों के पारंपरिक जल स्रोत प्रभावित हुए हैं।
बताया जाता है कि यहां के कई गांवों को राज्य सरकार की जल जीवन मिशन और हर घर नल योजना से जोड़ा गया है। इसके बावजूद लोगों को पीने का पानी नहीं मिल रहा है। ऋषिकेश से करीब 20 किमी दूर तिमली गांव के सभी जल स्रोत और वहां के कई तालाब सूख गए हैं। सरकारी नलों में पानी नहीं आ रहा है। जिस से लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन तंत्र मजबूत करने की जरूरत
अनूप नौटियाल का कहना है कि उत्तराखंड को अपने आपदा प्रबंधन तंत्र और क्लाइमेट एक्शन की कमज़ोर कड़ियों को मजबूत करने की सख्त ज़रूरत है। उन्होंने उम्मीद जताई कि उत्तराखंड उदय मासिक रिपोर्ट उत्तराखंड के राजनीतिज्ञों, नीति निर्माताओं और अन्य हितधारकों के लिए सहायक होगी।
इसके साथ ही आपदाओं से होने वाले नुकसान के न्यूनीकरण के लिए नीतियां बनाते समय भी संभवत इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा। बता दें कि पहले उत्तराखंड डिजास्टर एंड एक्सीडेंट सिनोप्सिस, उदास के नाम से जारी की जा रही थी। अब इसे उत्तराखंड डिजास्टर एंड एक्सीडेंट एनालिसिस इनिशिएटिव, उदय नाम दिया गया है।