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केदारनाथ आने का बना रहें हैं प्लान, तो पंच केदार के जरूर करें दर्शन, सभी मनोकामनाएं होती हैं पूरी

Yogita Bisht
8 Min Read
पंच केदार panch kedar

केदारनाथ धाम में देश ही नहीं अपितु विदेशों से भी भक्त भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं। उत्तराखंड में शिव कण-कण में पूजे जाते हैं। देवभूमि में कहीं उनका मान दामाद की तरह किया जाता है तो कहीं जीजा की तरह उनसे हंसी ठिठोली भी की जाती है। शिव का सबसे पसंदीदा स्थान कैलाश के बाद केदारनाथ को माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं की उत्तराखंड में सिर्फ एक ही केदार नहीं हैं बल्कि यहां पांच शिव मंदिर हैं जिन्हें पंच केदार कहा जाता है।

कैसे हुई केदारनाथ और पंच केदार की स्थापना ?

किंवदंतियों के मुताबिक महाभारत युद्ध के बाद जब पांडव पर गोत्र हत्या का पाप लग गया था तो पश्चाताप के लिए उन्होंने अपना राज पाठ छोड़ दिया और केदारनाथ की तरफ चल पड़े। लेकिन शिव पांडवों से काफी नाराज थे और उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। जिस वजह से जब पांडव केदार की तरफ पहुंचे तो भगवान शिव ने उनसे दूर रहने के लिए बैल का रूप धारण कर लिया और पहले से मौजूद पशुओं के बीच जाकर छिपने की कोशिश करने लगे।

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केदारनाथ ——-

भीम ने भगवान शिव को पहचान लिया। जैसे ही भगवान शिव को इस बात का अहसास हुआ तो वो धरती में समाने लगे जिसे देखकर भीम ने तुरंत उस बैल रूपी शिव की पीठ का पिछला हिस्सा पकड़ लिया और वो हिस्सा धरती के ऊपर ही रह गया। जो आज केदारनाथ में द्वादश ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है। बैल का पिछला हिस्सा तो केदारनाथ में रह गया। लेकिन उसके बाकी चार भाग, मुख- रुद्रनाथ में, नाभि- मध्यमहेश्वर में, भुजाएं– तुंगनाथ और जटाएं- कपिलेश्वर, में प्रकट हुई। तभी से ये स्थान पंचकेदार के रूप में जाने जाने लगे। फिर पांडवों ने इन पांचों स्थानों पर मंदिर बनवाए। पांडवों की निष्ठा देखकर, शिव खुश हो गए और भगवान शिव ने दर्शन देकर पांचों भाइयों को गोत्र हत्या के पाप से मुक्त कर दिया ।

भगवान शिव ने दिया था केदार भूमि में निवास का वचन

पंच केदार में केदारनाथ सबसे अहम है। केदारनाथ के लिए एक और किवदंती कही जाती है कि यहां नर नारायण नाम के दो ऋषियों ने भगवान शिव का तप किया था। जिससे खुश होकर शिव ने उन्हें दर्शन दिए थे। भगवान शिव उन्हें ने इसी केदार भूमि में निवास करने का वचन भी दिया।

1. केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham)

केदारनाथ धाम शव भक्तों के दिल में एक अलग ही स्थान रखता है। बाबा के दर्शनों को लिए भक्तों को कठिन रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। बाबा केदार छह महीने अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। जबकि शीतकाल में छह महीने वो तपस्या में लीन रहते हैं। इस दौरान मंदिर में कोई भी नहीं होता है। बता दें कि शीतकाल में भगवान केदारनाथ शीतकालीन गद्दीस्थल ओमकारेश्वर मंदिर में दर्शन देते हैं।

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केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham)——

2. मध्यमहेश्वर (Madhyamaheshwar)

मध्यमहेश्वर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में ऊखीमठ के पास स्थित है। यहां शिव की पूजा नाभि लिंगम के रुप में की जाती है। कुछ किंवदंतियां तो ये भी कहती हैं कि यहां की सुन्दरता में मुग्द्ध होकर शिव-पार्वती ने अपनी मधुचंद्र रात्रि यहीं मनाई थी।

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मध्यमहेश्वर (Madhyamaheshwar)——

मदमहेश्वर के बारे में ये भी कहा जाता है कि यहां की पवित्र जल की चंद बूंदें ही मोक्ष के लिए काफी हैं। इसके साथ ही कहा जाता है जो भी इंसान भक्ति या बिना भक्ति के भी मदमहेश्वर के माहात्म्य को सुनता या पढ़ता है उसे बिना कोई और चीज करे शिव के धाम की प्राप्ति हो जाती है। इसी के साथ कोई भी अगर यहां पिंडदान करता है तो उसकी सौ पुश्तें तक तर जाती हैं।

3. तुंगनाथ (Tungnath)

विश्व में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित शिव का धाम तुंगनाथ रुद्रप्रयाग जिले में समुद्र की सतह से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। तुंगनाथ में भगवान शिव के साथ-साथ भगवती, उमादेवी और ग्यारह लघुदेवियाँ भी पूजी जाती हैं। इन देवियों को स्थानीय भाषा में द्यूलियाँ भी कहा जाता है। माघ के महीने में तुंगनाथ का डोला या दिवारा निकाला जाता है जो पंचकोटि गाँवों का फेरा लगाता है। इस डोले के साथ गाजे-बाजे और निसाण भी होते हैं।

पौराणिक मान्यता के अनुसार तुंगनाथ में भगवान शिव के बाहु यानी भुजा की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि रावण ने इसी स्थान पर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था और बदले में भोले बाबा ने उसे अतुलनीय भुजाबल दिया था। इस घटना के प्रतीक के रूप में यहां पर रावणशिला और रावण मठ भी हैं।

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तुंगनाथ (Tungnath)———

तुंगनाथ से थोड़ी दूर करीब दो सौ मीटर की ऊंचाई वाली एक दूसरी पहाड़ी पर चंद्रशिला है। कहा जाता है कि यहां भगवान राम ने तप किया था। शीतकाल में यहां की मूर्तियों को सांकेतिक रूप से रुद्रप्रयाग जिले के ही ऊखीमठ, मक्कूनाथ में स्थापित किया जाता है और वहीं उनकी पूजा अर्चना की जाती है।

4. रुद्रनाथ (Rudranath)

उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले में रुद्रनाथ धाम स्थापित है, जिसे चौथा केदार कहा जाता है। रुद्रनाथ में शिव के एकानन रूप यानी मुख की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत के समय में पांडवों के द्वारा किया गया था। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव की पूजा नील कंठ रूप में की जाती है।

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रुद्रनाथ (Rudranath) ——–

ऐसा कहा जाता है कि कहते हैं यहां शिव के बैल रुपी अवतार का मुख प्रकट हुआ था। इसलिए इस शिवलिंग को स्वयंभू शिवलिंग के नाम से भी जाना जाता है। इस स्वयंभू शिवलिंग की आकृति मुख जैसी है जिसकी गर्दन टेढ़ी है। ये शिवलिंग एक प्राकृतिक शिवलिंग है जिसकी गहराई का आज तक पता नही लगाया जा सका है। मंदिर के आस-पास कई छोटे मंदिर भी स्थापित हैं जो पांचों पांडवों, माता कुंती और द्रौपदी को समर्पित हैं।

5. कल्पेश्वर (Kalpeshwar)

कल्पेश्वर महादेव मंदिर गढ़वाल के चमोली में स्थित है। कल्पगंगा घाटी में बसे इस मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यता हैं की ये मंदिर पांडवों ने बनवाया था। कहा जाता है कि यहां पर भगवान शिव की जटा उत्पन्न हुई थी। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक यही वो जगह है जहां पर स्थित कुंड से शिव ने समुद्र मंथन के लिए जल दिया था। जिससे चौदह रत्न उत्पन्न हुए थे।

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कल्पेश्वर (Kalpeshwar)——

किंवदंतियों के मुताबिक ये भी कहा जाता है की यहां दुर्वासा ऋषि ने कल्पवृक्ष के नीचे बैठ के तप किया था। जिस वजह से इस जगह को कल्पेश्वर कहा जाने लगा। कल्पेश्वर को कल्पनाथ भी कहा जाता है। यहां शिव कि जटा की पूजा विशाल चट्टान के नीचे एक छोटी सी गुफा में की जाती है।

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योगिता बिष्ट उत्तराखंड की युवा पत्रकार हैं और राजनीतिक और सामाजिक हलचलों पर पैनी नजर रखती हैंं। योगिता को डिजिटल मीडिया में कंटेंट क्रिएशन का खासा अनुभव है।