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Uttarakhand Election : 72 साल का चुनावी इतिहास, इस गांव में वोट मांगने नहीं गया कोई नेता

Yogita Bisht
4 Min Read
वोट मांगने

चुनावी मौसम है और नेता गांव हो या फिर शहर के घर-घर जाकर अपने लिए वोट की अपील कर रहे हैं। हर चुनावी मौसम में ऐसा ही देखने को मिलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में एक गांव ऐसा भी है जहां आज तक कोई नेता वोट मांगने लिए नहीं पहुंचा। ये गांव देश के किसी और राज्य में नहीं बल्कि देवभूमि उत्तराखंड में स्थित है। हैरान कर देने वाली बात तो ये है कि यहां के कई लोगों ने आज तक कोई सांसद या विधायक तक को देखा भी नहीं है।

72 साल का चुनावी इतिहास में कोई नहीं पहुंचा वोट मांगने

ऐसा गांव जहां कभी कोई वोट मांगने के लिए आज तक कोई नहीं पहुंचा। ये गांव उत्तराखंड में कहीं दूर-दराज नहीं बल्कि राजधानी देहरादून से कुछ ही दूरी पर स्थित है। देहरादून जिले के चकराता के उदांवा गांव में आज तक कोई भी वोट मांगने के लिए नहीं पहुंचा। देश में पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ था। तब से लेकर आज तक करीब 72 साल के चुनावी इतिहास हो गया है लेकिन लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनावों तक आज तक एक भी प्रत्याशी ने इस गांव का रूख नहीं किया। हैरानी की बात तो ये है कि गांव के कई बुजुर्गों ने कभी सांसद या विधायक तक का चेहरा भी नहीं देखा।

टिहरी लोकसभा क्षेत्र में आता है उदांवा गांव

आपको बता दें कि उदांवा गांव टिहरी लोकसभा क्षेत्र के अन्तगर्त आता है। चुनावों की रणभेरी बजते ही प्रत्याशी वोच मांगने के लिए दौड़भाग कर रहे हैं। लेकिन इस सबके बीच टिहरी लोकसभा क्षेत्र का उदांवा गांव अपवाद बना हुआ है। सात दशकों के बाद भी आज तक कोई यहां वोट मांगने के लिए नहीं आया। लेकिन इसके बावजूद गांव वाले वोट देते हैं।

इतना समय बीतने के बाद भी गांव के निवासियों को लोकसभा और विधानसभा चुनाव के प्रत्याशियों के दर्शन नहीं हुए हैं। दरअसल इस गांव तक पहुंचने के लिए दस किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। इसके बावजूद गांव वाले हर बार वोट तो देते हैं लेकिन फिर भी उनकी सुनने वाला कोई नहीं है।

गांव के लोगों को मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं

गांव के लोगों का कहना है कि उनके गांव में चुनाव को लेकर कोई हलचल नहीं दिखाई देती है। इतने सालों से किसी भी पार्टी का कोई भी प्रत्याशी वोट मांगने के लिए उनके गांव में नहीं आया। गांव वालों का कहना है कि वोट डालने के लिए जाने के लिए उन्हें जद्दोजहद करनी पड़ती है। वोट डालने के लिए जाना नहीं चाहते लेकिन वो सिर्फ इस लिए वोट डालते हैं कि कहीं उनका नाम वोटर लिस्ट से कट ना जाए। ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें मूलभूत सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं है। जिस कारण उन्हें आए दिन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

कई बुजुर्गों ने अपने विधायक और सांसद का नहीं देखा चेहरा

नेताओं के ऐसे रवैये के चलते लोगों में चुनाव को लेकर उत्साह नहीं है। गांव वालों का कहना है कि लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव यहां कभी कोई प्रत्याशी वोट मांगने नहीं आया। जिसके चलते आलम ये है कि गांव के कई बुजुर्गों ने अपने विधायक और सांसद का चेहरा तक नहीं देखा है।

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योगिता बिष्ट उत्तराखंड की युवा पत्रकार हैं और राजनीतिक और सामाजिक हलचलों पर पैनी नजर रखती हैंं। योगिता को डिजिटल मीडिया में कंटेंट क्रिएशन का खासा अनुभव है।