गरबा और डांडिया दोनों ही गुजराती संस्कृति का हिस्सा है। ये दोनों ही आमतौर पर Navratri से जुड़े हैं, जिसमें एक तरफ लोग मां अंबे के आने की खुशी मनाते हैं तो दूसरी तरफ बुराई पर अच्छाई की जीत का। पहली नजर में गरबा और डांडिया एक जैसे लग सकते हैं जबकि इन दोनों की शैलियों, लय और अवसरों में काफी अंतर है। ये दोनों ही दो अलग-अलग तरीके की भावनाओं को कहती हैं और दोनों के साथ दो अलग-अलग तरीके की भावनाए जुड़ी होती हैं। आइये जानते हैं इन दोनों में अंतर।
क्या होता है डांडिया ?
डांडिया असल में देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच युद्ध का प्रतीक है। इस डांस में कहानी ये है कि डांडिया की रंगीन छड़िया देवी की तलवार का प्रतिनिधित्व करती हैं। जो लोग सही है डांडिया करना चाहते हैं वो आंखों के एक्सप्रेशन के साथ इसे करते हैं जिसमें देवी के रुप को आप समझ सकते हैं और पूरे युद्ध की कल्पना कर सकते हैं। इसके अलावा डांडिया शाम को देवी की आरती के बाद की जाती है और प्रतिभागियों की एक समान संख्या की जरुरत होती है।
क्या होता है गरबा?
गरबा एक भक्तिपूर्ण अपील है और मां के आगमन की खुशी है। ये भजनों की मधुर धुनों के साथ की जाती है। गरबा मां अंबे की आरती से पहले की जाती है। इसमें भक्त देवी के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए एक साथ आते हैं। इसमें हाथ और पैर एक लयबद्ध संगत के रुप में ताली बजाते हुए गोलाकार गति से चलते हैं। गरबा डांस जीवन की गोलाकार गति और जीवन चक्र का प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें देवी दुर्गा अजेय रहती हैं।