उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद एवं भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी ने जिला अधिकारी पौड़ी को पत्र लिखकर कोटद्वार की मतदाता सूची से उनका नाम उनके पैतृक ग्राम नकोट, कंडवालस्यूँ, विकासखंड कोट, पौढ़ी गढ़वाल स्थानांतरित करने का अनुरोध किया है।
बलूनी ने कहा कि शिक्षा और रोजगार के कारण भारी संख्या में उत्तराखंड से पलायन हुआ है। धीरे-धीरे गांव से प्रवासियों के संबंध खत्म हुए हैं, जिस कारण राज्य की संस्कृति रीति -रिवाज, बोली-भाषा भी प्रभावित हुई है जिसका संरक्षण आवश्यक है।
उत्तराखंड के गांवों में वो चहल-पहल लौटाने की अच्छी पहल
सांसदू बलूनी की इस पहल से जरुर कई लोग प्रभावित होंगे जिससे पलायन कर चुके लोग गांवों की ओर लौटेंगे चाहे एक ही दिन(मतदान) के लिए क्यों न आए. सांसद बलूनी की पहल जरुर रंग लाती दिखाई दे हम ऐसी आशा करते हैं. गांवों में तेजी से पलायन हुआ है और लोगों ने अपना नाम गांव के वोटर लिस्ट से कटाकर शहरों में जोड़ लिया है जिससे सांसद बलूनी आहत हैं और इसकी को देखते हुए उन्होंने उत्तराखंड के गांवों में वो चहल-पहल लौटाने की अच्छी पहल की है.
अनिल बलूनी की फेसबुक पोस्ट
अनिल बलूनी ने फेसबुक के माध्यम से कहा कि मित्रों, मैंने अपने मूल गांव की मतदाता सूची में अपना नाम जोड़ने का निर्णय किया है। अभी तक मेरा नाम मालवीय उद्यान, कोटद्वार की सूची में था, जिसे मैंने स्थानांतरित कर ग्राम- नकोट, पट्टी- कंडवालस्यु, विकासखंड कोट, जिला पौड़ी में स्थानांतरित कर दिया है। यह मेरी निजी स्तर पर प्रतीकात्मक शुरुआत है ताकि हम अपने छूट चुके गांव से जुड़ने का शुभारंभ करें और जनअभियान बनायें। पलायन के समाधान के लिए केवल सरकारों पर आश्रित नहीं रहा जा सकता। पहल अपने-अपने स्तर पर हमें भी करनी होगी। ऐसा कर प्रवासियों का अपने मूल गांव से पुनः भावनात्मक रिश्ता बनेगा, गांव की समस्याओं से अवगत होंगे और मिलजुलकर उनका समाधान करेंगे। तभी हमारी समृद्ध भाषा, संस्कृति, खानपान, रीति-रिवाज और महान परंपरायें जीवित रह सकेंगी।
गांव से जुड़कर ही व्यवहारिक रूप से हम परिस्थितियों को समझ सकते हैं-बलूनी
सांसद बलूनी ने कहा कि उन्होंने स्वयं अनुभव किया कि पलायन द्वारा शिक्षा, रोजगार तो प्राप्त कर सकते हैं लेकिन अपनी जड़ों से जुड़े रहने की कोशिश प्रत्येक प्रवासियों करनी चाहिए ताकि हमारी भाषा और संस्कृति रीति रिवाज त्योहार संरक्षित रह सकें। बलूनी ने कहा कि गांव से जुड़कर ही व्यवहारिक रूप से हम परिस्थितियों को समझ सकते हैं। उन्होंने कहा कि पलायन पर कार्य करने वाली संस्थाओं और व्यक्तियों से जुड़कर वे इस अभियान को आगे बढाएंगे।
तो निसंदेह हम अपनी देवभूमि को भी सवार पाएंगे-बलूनी
सांसद बलूनी ने कहा कि उन्होंने निर्जन बौरगांव को गोद लेकर अनुभव किया कि बहुत समृद्ध विरासत की हम लोगों ने उपेक्षा की है। हमने पलायन को विकास का पर्याय मान लिया है। अगर हर प्रवासी अपने गांव के विकास की चिंता करें और गांव तथा सरकार के बीच सेतु का कार्य करें तो निसंदेह हम अपनी देवभूमि को भी सवार पाएंगे और अपनी भाषा, संस्कृति और रीति-रिवाजों को सहेज पाएंगे।