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शिक्षा मंत्री के दावे निकले झूठे, बिना किताबों के पढ़ रहे बच्चे, पुरानी भी मयस्सर नहीं

Sakshi Chhamalwan
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education department

उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में भी प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर एक अप्रैल से नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो गया है। लेकिन सरकारी स्कूलों की विडंबना यह है कि अभी तक अप्रैल का महीना गुजरने को है। लेकिन सरकारी स्कूलों के छात्रों को पुस्तकें देखने तक के लिए नसीब नहीं हुई है।

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आखिर कैसे सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र पढ़ाई कर पाएंगे। क्या कुछ तस्वीर सरकारी स्कूलों में पुस्तक न मिलने को लेकर है और क्या गुहार छात्र सरकार से लगा रहे हैं। इसी को लेकर कुछ स्कूलों में जाकर हमने जानकारी जुटाई है आप भी पढ़िए।

आज के समय में शिक्षा का बाजारीकरण हो चला है क्योंकि अमीर लोगों के बच्चे जहां प्राइवेट स्कूलों की चकाचौंध में शिक्षा ग्रहण करते हैं तो वही गरीब अभिभावकों के बच्चे आज भी सरकारी स्कूलों में पढ़ने को मजबूर हैं। यहां तक कि जिन नेताओं और अधिकारियों की जिम्मेदारी सरकारी स्कूलों को संवारने की है। उनके बच्चे भी प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ाई करते हैं।

यही एक वजह है कि आज के दौर में गरीब अभिभावकों के बच्चे ही केवल सरकारी स्कूल में जाते हैं। सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे नौनिहालों के साथ भेदभाव भी देखने को मिल रहा है और इसी भेदभाव के तहत जहां प्राइवेट स्कूलों में छात्रों की सुचारू रूप से पढ़ाई शुरू हो गई है। वहीं सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को सरकार द्वारा दी जाने वाली पुस्तकें अभी तक उपलब्ध नहीं हो पाई है। जिस वजह से छात्रों की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है।

नौनिहालों की सरकार से गुहार

बच्चे सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि सरकार ने जब उन्हें किताबें देनी ही है तो समय पर किताबें उपलब्ध करा दें। ताकि उनकी पढ़ाई प्रभावित ना हो। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को अभी तक पुस्तके नहीं मिल पाई हैं। दूसरी तरफ प्राइवेट स्कूल के छात्रों की पढाई सुचारु रूप से शुरू हो गई है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है सरकार सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों के प्रति कितनी सजग है। लाजमी है की प्राइवेट स्कूलों के छात्र आगे बढ़ेगे ही। क्योंकि सरकारी स्कूलों में सरकारी सिस्टम हर साल किताबों को आधे शैक्षणिक सत्र तक बांटने का काम करता है।

कई बच्चों ने सरकार को दिखाया आईना

ऐसा नहीं है कि सरकारी स्कूलों में सभी बच्चे सरकार द्वारा दी जाने वाली किताबों का इन्तजार कर रहे हैं। देहरादून के कई सरकारी स्कूलों में बच्चों ने खुद से ही नईकिताबें खरीद ली है। ताकि उनकी पढ़ाई प्रभावित ना हो सके। छात्रों को कहना है कि सरकार द्धारा किताबें अगस्त महीने में दी जाती है। ऐसे में उनकी बोर्ड परीक्षा में कोई दिक्कत न हो इसलिए वो सरकार के भरोसे नहीं रहना चाहते।

जबकि कुछ छात्रों का कहना कि स्कूल द्धारा कुछ पुस्तकें उन्हे दी गई हैं, फिर भी उनके पास पूरी किताबें नहीं है। जबकि कुछ किताबें फटी हुई भी मिली है। कुछ छात्र गरीबी के चलते पूरी तरह से सरकार पर ही निर्भर हैं।

शिक्षा मंत्री का बयान बढ़ा रहा मुश्किलें

उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत का कहना है कि पुरानी पुस्तकें छात्रों को उपल्बध करा दी गई है। जिससे छात्रों को पुस्तकों की कमी नहीं है। लेकिन धरातल पर तस्वीर कुछ और ही नजर आ रही है। कुछ स्कूलों में बोर्ड परीक्षा इस साल देने वाले छात्रों को इस वजह से पुस्तक नहीं मिल पा रही है क्योंकि जिन छात्रों का बोर्ड परीक्षा परिणाम आना है। वह अभी अपनी पुस्तकें स्कूल में जमा नहीं कर रहे हैं। इस स्थिति को शिक्षा मंत्री को भी समझना होगा कि ऐसा राजधानी देहरादून के स्कूलों में हो रहा है तो ग्रामीण इलाकों का क्या ही हाल होगा।

शिक्षकों ने स्वीकारी विभाग की गलती

उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में एनसीईआरटी का सिलेबस लागू है। इसी बीच एनसीईआरटी के द्वारा सिलेबस में बदलाव भी कक्षा 10 और 12वीं में किया गया है। जिसको लेकर भ्रम की स्थिति भी थी कि आखिर जिस सिलेबस में कटौती हुई है। उसको पढ़ाया जाए या नहीं। जिसको लेकर रामनगर बोर्ड के द्वारा सभी प्रधानाचार्य को बकायदा निर्देश भी जारी किए गए हैं कि वह एनसीईआरटी के सिलेबस के तहत ही नेट पर देख कर छात्रों की पढ़ाई कराए।

इसे लेकर प्रधानाचार्य सुरेंद्र बिष्ट का कहना है कि जो निर्देश मिले थे। उसके हिसाब से ही स्कूल के सभी शिक्षकों को अवगत कराया गया है कि वह नेट पर देख कर नए सिलेबस के तहत ही छात्रों को पढ़ाएं क्योंकि छात्रों के पास अभी पुरानी सिलेबस की किताबे हैं। नई किताबें नहीं मिलने से कुछ दिक्कतें स्कूलों में हो रही है। क्योंकि कुछ कक्षाओं में छात्र संख्या बढ़ने से सभी छात्रों को पुरानी किताबें उपलब्ध नहीं हो पा रही है।

शिक्षक नेताओं ने लगाए विभाग पर लापरवाही के आरोप

शिक्षक नेता अंकित जोशी ने शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। अंकित जोशी ने कहा की विभाग समय रहते किताबों को छपवाने की प्लानिंग नहीं कर पाता है। जिस वजह से किताबें हर साल लेट छपती हैं।

शिक्षा महानिदेशक ने दिया तर्क, अगले साल से नहीं होगी दिक्कत

उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में प्रदेश सरकार द्वारा किताबें बच्चों को मुहैया कराई जाती है, इसलिए छात्र भी किताबों को नहीं खरीद पाते हैं। लेकिन किताबों को लेट छपने से पढ़ाई के नुकसान का खामियाजा छात्रों को ही उठाना पड़ता है। शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी का कहना है कि जल्द ही किताबों छप जाएगी।

जैसे जैसे किताबें छपती रहेंगी वैसे वैसे स्कूलों को उपलब्ध करा दी जाएगी। अगने साल से इस तरह की दिक्कत नहीं होगी। क्योंकि इस साल से शिक्षा मंत्री ने निर्देश दिए हैं कि सभी स्कूलों में बूक बैंक बनाएं जाएंगे। जिससे इस तरह की दिक्कतों का स्कूली बच्चों को सामना नहीं करना पड़ेगा।

डिबिटी पर भी सरकार को करना चाहिए विचार

कुल मिलाकर देखें तो उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को नई किताबों के लिए अभी और इंतजार करना होगा। क्योंकि अभी देहरादून के स्कूलों में ही किताबें नहीं पहुंची है तो प्रदेश के दूरस्थ जिलों के स्कूलों में किताबें कब तक पहुंचेगी। इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

दूसरी तरफ तस्वीर यह भी है की कुछ छात्र खुद ही बाजार से किताब खरीद कर सिस्टम को आईने दिखाने का काम कर रहे हैं। ताकि उनकी पढ़ाई प्रभावित ना हो। गरीब तबके के अभिभावक और छात्रों की नजरें अभी भी सरकार की तरफ टकटकी लगाए हुए है। लेकिन सरकार को डीबीडी माध्यम पर भी विचार करना चाहिए।

जिससे सरकार छात्रों के बैंक खाते में सीधा पैंसा डाल दे और छात्र नए शैक्षणिक सत्र की शुरूवात में ही किताबें खरीद लें और उनकी पढ़ाई भी प्रभावित ना हो। लेकिन ऐसा शिक्षा विभाग और सरकार में से सोचेगा कौन ये अपने आप में ही एक सवाल है।

मनीष डंगवाल के इनपुट के आधार पर

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Sakshi Chhamalwan उत्तराखंड में डिजिटल मीडिया से जुड़ीं युवा पत्रकार हैं। साक्षी टीवी मीडिया का भी अनुभव रखती हैं। मौजूदा वक्त में साक्षी खबरउत्तराखंड.कॉम के साथ जुड़ी हैं। साक्षी उत्तराखंड की राजनीतिक हलचल के साथ साथ, देश, दुनिया, और धर्म जैसी बीट पर काम करती हैं।