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Maha Shivratri 2024 : उत्तराखंड में हैं चमत्कारिक शिव मंदिर, कहीं मुर्दे हो जाते हैं जिंदा, तो कहीं पूरी होती है हर मुराद

Yogita Bisht
8 Min Read
Maha Shivratri 2024

उत्तराखंड के कण-कण में शिव वास करते हैं। यहां हर कदम पर कोई ना कोई मंदिर हैं और यही कारण है कि उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। केदारनाथ धाम के बारे में तो हर कोई जानता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि उत्तराखंड में ऐसे शिव मंदिर भी स्थित है जहां पर मुर्दे भी जिंदा हो जाते हैं और हर मनोकामना पूरी होती है। आज हम आपको उत्तराखंड के ऐसे ही चमत्कारिक शिव मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं।

जब हम शिव कहते हैं तो हमारा मतलब शून्य होता है। आज आधुनिक विज्ञान भी इस बात को मानता है की इस संसार में सब कुछ शून्य से ही शुरू होता है और शून्य पर ही खत्म होता है। शिव को भोले भंडारी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि शिव देव दानवों में कोई भेद नहीं करते। उनसे जो भी कोई कुछ मांगता है वो दे देते हैं।

कोटेश्वर महादेव (Koteshwar Mahadev)

भस्मासुर के बारे में तो आपने सुना ही होगा कि भगवान शिव ने भस्मासुर नाम के एक राक्षस को ये वरदान दिया था कि वो जिसके सर में भी हाथ रख देगा वो भस्म हो जाएगा। लेकिन भस्मासुर को शिव द्वारा दिए गए वरदान पे विश्वास नहीं था तो उसने वरदान आजमाने के लिए शिव के सिर पर ही हाथ रखना चाहा। तब भगवान शिव ने अपनी जान बचाने के लिए इसी गुफा में शरण ली थी।

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कोटेश्वर महादेव——–

ऐसा भी कहा जाता है कि महाभारत युद्घ के बाद पांडवों को भगवान शिव तपस्या करते हुए मिले थे। कहते हैं कोटेश्वर गुफा में भगवान शिव ने तपस्या की थी और यहां एक करोड़ शिवलिंग हैं जिस वजह से इस जगह का नाम कोटेश्वर पड़ा। यहां के बारे में मान्यता है कि शिवरात्रि के दिन यहां जो भी व्यक्ति थाली में दीप जलाकर उसे दोनों हाथ से उठाकर रातभर भगवान शिव की आराधना करता है उसे संतान सुख जरूर मिलता है।

ताड़केश्वर महादेव मंदिर (Tadkeshwar Mahadev)

गढ़वाल में लैंसडाउन के पास ताड़केश्वर महादेव मंदिर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार की यहां ताड़कासुर नाम के राक्षस ने भगवान शिव से अमरता का वरदान लेने के लिए तप किया था। वरदान मिलते ही ताड़कासुर ने देवताओं और ऋषि मुनियों पे अत्याचार करना शुरू कर दिया। जिसके बाद सभी ने मिल कर भगवान शिव से ताड़कासुर का अंत करने कि प्रर्थना की।

खुद को मृत्यु को निकट पाकर ताड़कासुर ने शिव से माफी मांगी तो शिव ने उसे क्षमा कर दिया और कहा कि कलयुग में लोग तुम्हारे ही नाम से मेरी पूजा करेंगे। तभी से इस स्थल को ताड़केश्वर महादेव के नाम से जाना जाने लगा। एक और दन्त कथा के मुताबिक यहां एक साधु रहा करते थे जो यहां रहने वाले पशु-पक्षियों को परेशान करने वालों को ताड़ते यानी दंड देते थे। जिनके नाम से ये महादेव का मंदिर ताड़केश्वर महादेव नाम से विख्यात हो गया।

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ताड़केश्वर महादेव ——–

लोक मान्यताओं के अनुसार ताड़कासुर का वध करने के बाद शिव यहां विश्राम करने लगे। इस दौरान सूरज की तेज़ किरणें पड़ने लगी ये देख माता पार्वती विचलित हो गई और खुद सात देवदार के पेड़ों के रूप में वहां प्रकट हो कर शिव को छाया देने लगी। जिसके बाद से ही मंदिर के पास स्थित सात देवदार के पेड़ों को पार्वती का रूप मान कर आज भी पूजा जाता है। माना जाता है कि आज भी पार्वती यहां छाया के रूप में मौजूद है। इस ताड़केश्वर मंदिर का वर्णन महाकवि कालिदास ने अपनी रचना रघुवंश खण्डकाव्य के द्वितीय चरण में भी किया है।

रामायण में ताड़केश्वर धाम को दिव्य और पावन आश्रम कहा गया है। इसी ताड़केश्वर महादेव मंदिर परिसर में देवदार का एक त्रिशूल रुपी पेड़ मौजूद है जो लोगों की शिव के प्रति आस्था को और मजबूत बनाता है। मान्यता है कि यहां जो भी सच्चे मन से मुराद लेकर आता है वो कभी खाली हाथ नहीं जाता है।

ओमकारेश्वर मंदिर (Omkareshwar Temple)

उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग के उखीमठ में स्थित है ओमकारेश्वर मंदिर जो बाबा केदार और मध्यमहेश्वर का शीतकालीन निवास स्थान है। यहां बाबा केदार और मध्यमहेश 6 महीने पूजे जाते हैं। माना जाता है की जो भी व्यक्ति केदारनाथ और मध्यमहेश्वर जाकर भगवान शिव के दर्शन नहीं कर पाता वो अगर शीतकाल में आकर ओमकारेश्वर मंदिर में बाबा केदार और मध्यमहेश्वर के दर्शन कर ले उसके चारों धामों कि यात्रा पूरी हो जाती है। ओमकारेश्वर मंदिर में पंचकेदारों के शिवलिंग भी स्थापित हैं जो भी व्यक्ति पंचकेदार के दर्शन नहीं कर पाते वो ओमकारेश्वर मंदिर जाकर पंचकेदार के दर्शन कर लेते हैं और उनकी पंचकेदारों कि यात्रा भी सफल मानी जाती है।

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ओमकारेश्वर मंदिर ——

लाखामंडल (Lakhamandal)

क्या आप किसी ऐसे शिव के धाम के बारे में जानते हैं जहां पर मरा हुआ व्यक्ति भी जिंदा हो जाता है। जी हां देवभूमि उत्तराखंड में ऐसा मंदिर स्थित है जहां पर मुर्दे भी जिंदा हो जाते हैं। देहरादून से लगभग 128 किलोमीटर की दूरी पर है बर्नीगाड़ नाम की जगह पर प्रसिद्घ शिव मंदिर लाखामंडल बसा हुआ है। यहां के बारे में कहा जाता है कि यहां पर मुर्दे भी जिंदा हो जाते हैं।

लाखामंडल का शाब्दिक अर्थ कई शिवलिंग या कई मंदिर है। इस मंदिर में भी कई शिवलिंग स्थापित हैं जो कि लाल, हरे, काले और सफेद रंग के हैं। यहां स्थापित हर शिवलिंग अलग-अलग युग का बताया जाता है। जैसे सतयुग का सफेद शिवलिंग, त्रेता युग का लाल शिवलिंग और द्वापर युग का हरा शिवलिंग। लाखामंडल में एक ऐसा विचित्र शिवलिंग भी मौजूद है जिसमें पानी डालते ही वो आपको आपका प्रतिबिंब साफ-साफ दिखाता है। मानों आपको आपकी सच्चाई से रुबरु करवा रहा हो।

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शिवलिंग ——-

लाखामंडल में मंदिर के पीछे की तरफ दो द्वारपालों की मूर्तियां हैं जिनका नाम नंदी तथा बृंगी है। माना जाता है कि अगर इन दो द्वारपालों के सामने किसी मृत व्यक्ति को रख कर उस पर अभिमंत्रित पवित्र जल छिड़का जाता है तो वो मुर्दा शरीर कुछ देर के लिए जिंदा हो जाता है। इसके बाद वो दूध भात खाकर वापस शरीर त्याग देता है। लेकिन अब ये प्रथा समाप्त हो गई है।

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लाखामंडल——-

लाखामंडल एक ऐसी रहस्यमय भूमि है जहां की कहानी आपको हैरान कर देगी और ये सोचने पे मजबूर भी की क्या सच में कोई मरा हुआ इंसान जिंदा हो सकता है क्या किसी को परलौकिक दुनिया से वापस लौकिक दुनिया में लाया जा सकता है।

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योगिता बिष्ट उत्तराखंड की युवा पत्रकार हैं और राजनीतिक और सामाजिक हलचलों पर पैनी नजर रखती हैंं। योगिता को डिजिटल मीडिया में कंटेंट क्रिएशन का खासा अनुभव है।