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ISRO को मिली अंतरिक्ष में एक और सफलता, पुष्पक विमान की तीसरी बार सफल लैंडिंग, जानें यहां

Renu Upreti
3 Min Read
ISRO gets another success in space
ISRO gets another success in space

इसरो ने अंतरिक्ष में एक और सफलता हासिल की है। इसरो के रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल- एलईएक्स-03 (RLV-LEX-03) पुष्पक की लगातार तीसरी बार सफल लैंडिंग कराई गई है। इस कामयाबी के बाद इसरो के लिए पुष्पर का आर्बिटल री-एंट्री टेस्ट करने का रास्ता साफ हो गया है। यह परीक्षण बेंगलुरु से लगभग 220 किमी दूर चित्रदुर्ग जिले के चल्लकेरे में एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज में आयोजित किया गया था।

क्या है आरएलवी प्रोजेक्ट?

आरएलवी प्रोजेक्ट में इसरो अतंरिक्ष में मानव उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश कर रहा है। रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल से इसरो को स्पेस मे लो-कास्ट एक्सेस मिलेगा। इससे स्पेस में आना और जाना सस्ता हो जाएगा। एक इस्तेमाल के बाद इस व्हीकल को दोबारा प्रयोग किया जा सकेगा। भारत अब त सैकड़ों सैटेलाइट लॉन्च कर चुका है। अभी भारत को इनमें खराबी आने पर या तो नासा की मदद की जरुरत पड़ती है या फिर इन्हें ठीक करने को कोई रास्ता नहीं है। इस लॉन्च व्हीकल की मदद से उसको नष्ट करने की बजाय रिपेयर किया जा सकेगा। इतना ही नहीं जीरो ग्रैविटी में बायोलॉजी और फार्मा से जुड़े रिसर्च करना आसान हो जाएगा।

पुष्पक विमान का परीक्षण

मीडिया रिपोर्ट में मिली जानकारी के अनुसार, इसरो की तरफ से आरएलवी पुष्पक विमान का परीक्षण सुबह 7.10 बजे बेंगलुरु से लगभग 220 किमी दूर चित्रदुर्ग जिले के चल्लाकरे में एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज में किया गया था। पुष्पक को इंडियन एयरफोर्स के चिनूक हेलीकॉप्टर से 4.5 किमी की ऊंचाई तक ले जाया गया और रनवे पर ऑटोनॉमस लैंडिग के लिए छोड़ा गया। इससे पहले जब इसरो ने एक्सपेरिमेंट किया था तब पुष्पक को 150 मीटर की क्रॉस रेंज से छोड़ा गया था। तीसरे प्रयोग में क्रॉल रेंज बढ़ाकर 500 मीटर कर दी गई। पुष्पर को 320 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से छोड़ा गया।  

इससे पहले दो बार हुआ एक्सपेरिमेंट

बता दें कि पुष्पक विमान ने इससे पहले दो बार एक्सपेरिमेंट हो चुके हैं। इससे पहले 2 अप्रैल 2023 को पहली बार पुष्पक विमान की लैंडिंग कराई गई थी। इसके बाद 22 मार्च 2024 को दूसरी बार टैस्टिंग हुई। रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल टेक्नोलॉजी अभी भारत के लिए नई है। नासा के अलावा कुछ और एजेंसियों के पास यब तकनीक मौजूद है। एलन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स भी इस तकनीक को हासिल कर चुकी है। भारत अभी इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।

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