उत्तर प्रदेश में कावड़ यात्रा के रुट पर दुकानदारों को नाम प्रदर्शित करने के यूपी सरकार के आदेश पर कोर्ट ने रोक जारी रखी है। इस नेमप्लेट विवाद के बीच अब नया मुद्दा हलाल और झटका को लेकर चर्चा में आया है। सुप्रीम कोर्ट में मांग की गई है कि कोर्ट आदेश दे कि रेस्टोरेंट्स इस बारे में जानकारी दें कि जो मीट वो परोस रहे हैं, वह झटका है या हलाल।
दरअसल, हलाल और झटका मांस परोसे जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। शीर्ष अदालत में दाखिल याचिका में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को यह आदेश देने की मांग की गई है कि वे अपने यहां स्थित भोजनालयों, रेस्तरां, सहित खान-पान की सभी दुकानों को यह साफसाफ उल्लेख करने का निर्देश दें कि उनके यहां परोसा जा रहा मांस किस प्रकार का है।
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट में दायर इस याचिका में कहा गया कि यूपी-एमपी और उत्तराखंड को यह आदेश जारी करना चाहिए कि झटका मांस का विकल्प नहीं देना वाला रेस्टोरेंट संविधान के अनुच्छेद 17 और अनुच्छेद 19(1) C और अनुच्छेद 15 का उल्लंघन माना जाएगा। याचिकाकर्त्ता ने कहा है कि झटका मांस नहीं देने से पांरपंरिक रुप से हाशिए पर रहने वाला दलित समुदाय काफी प्रभावित होता है क्योंकि वह मुख्य तौर पर मांस का ही व्यापार करता है।
हलाल और झटका में क्या फर्क?
बता दें कि हलाल और झटका से मतलब जानवर को काटने का तरीका होता है। अरबी शब्द में हलाल का मतलब जायज होता है। इस्लाम में माना गया है कि इसी तरह से काटे गए जानवर का मीट खाना सही है। इस तरीके में जानवर की गर्दन की नस और सांस लेने वाली नली को काट दिया जाता है। इस दौरान जानवर के खून के बाहर निकलने का इंतजार किया जाता है, जबकि झटके में जानवर को एक ही झटके में मार दिया जाता है। झटके में पहले जानवर को बेहोश किया जाता है और उसे काटने से पहले कुछ भी नहीं खिलाया जाता है और भूखा भी रखा जाता है और फिर एक झटके में ही जानवर को काट दिया जाता है। हालांकि इस मामले में एक बात फूड अथॉरिटी के नियम को लेकर भी है, जो यह बताता है कि किसी भी जानवर को मारने से पहले उसे बेहोश नहीं किया जा सकता है।