Big News : जोशीमठ भू-धंसाव पर IIRS का दावा, भूस्खलन का कारण नहीं हैं पनबिजली परियोजनाएं - Khabar Uttarakhand - Latest Uttarakhand News In Hindi, उत्तराखंड समाचार

जोशीमठ भू-धंसाव पर IIRS का दावा, भूस्खलन का कारण नहीं हैं पनबिजली परियोजनाएं

Yogita Bisht
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जोशीमठ में चल रहे वैज्ञानिक सर्वे के बीच IIRS का दावा सामने आया है। जिसमें IIRS ने कहा है कि पनबिजली परियोजनाएं भूस्खलन का कारण नहीं हैं। IIRS द्वारा किए गए एक अध्ययन के बाद जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि पनबिजली परियोजनाओं की वजह से इसके आसपास के क्षेत्रों में भूस्खलन कम हुआ है।

पनबिजली परियोजनाओं की वजह से नहीं हा रहा भू-धंसाव

जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव ने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया। जिसके बाद जोशीमठ को लेकर तमाम अध्ययन किए जा रहे हैं। जहां एक तरफ जोशीमठ में वैज्ञानिक अध्ययन चल रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ इसको लेकर IIRS ने एक दावा किया है।

देहरादून स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग ने दावा किया है कि पनबिजली परियोजनाएं भूस्खलन का कारण नहीं हैं। संस्थान ने एक अध्ययन किया है जिसके बाद रिपोर्ट जारी की गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पनबिजली परियोजनाओं की वजह से इसके आसपास के क्षेत्रों में भूस्खलन कम हुआ है।

IIRS के अध्ययन में देश की नौ परियोजनाएं शामिल

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग द्वारा किए गए इस अध्ययन में देश की नौ परियोजनाओं को शामिल किया गया है। IIRS की ओर से रिमोट सेंसिंग और जीआईएस प्रौद्योगिकी का उपयोग करने वाली चालू, निर्माणाधीन हाइड्रो परियोजनाओं में भूस्खलन अध्ययन पर रिपोर्ट तैयार की है।

उत्तराखंड की धौलीगंगा परियोजना भी अध्ययन में शामिल

इस अध्ययन में उत्तराखंड के धौलीगंगा नदी पर बनी जल विद्युत परियोजना को भी शामिल किया गया है। इसके साथ हीअध्ययन में शामिल नौ परियोजनाओं में अरुणाचल प्रदेश में सुबनसिरी लोअर, परबत-द्वितीय, सिक्किम में तीस्ता-5 और रंगित, जम्मू-कश्मीर में सलाल, दुलहस्ती और उरी- द्वितीय और हिमाचल प्रदेश के चमेरा-प्रथम जबकि उत्तराखंड में जोशीमठ में धौलीगंगा पर निर्माणाधीन परियोजना शामिल है।

क्षेत्र को स्थिर करने में हाइड्रोलॉजिकल स्थिति ने की मदद

इस रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि जलविद्युत परियोजनाओं के आसपास भूस्खलन गतिविधियां परियोजना की निर्माण गतिविधि से संबंधित नहीं हैं। इस अध्ययन में परियोजना के निर्माण की शुरुआत से 10 साल पहले और पावर स्टेशन की वर्तमान स्थिति तक भूस्खलन की स्थिति पर मैप तैयार किए गए हैं।

जिसमें देखा गया कि ज्यादातर मामलों में परियोजना के निर्माण से पहले देखे गए भूस्खलन क्षेत्र की तुलना में बाद में भूस्खलन क्षेत्र में काफी कमी आई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक प्राप्त आंकड़ों से ऐसा लगता है कि ज्यादातर मामलों में जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण और संबंधित गतिविधियों और कमीशनिंग के बाद की हाइड्रोलॉजिकल स्थिति ने क्षेत्र को स्थिर करने में मदद की होगी।

इसके साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि जलविद्युत परियोजनाओं का आकार, स्थानीय भूविज्ञान, मिट्टी और भूमि कवर की स्थिति, जलाशय का आकार परियोजना क्षेत्रों में भूस्खलन को कम करने के लिए कुछ ढलान स्थिरीकरण भूमिका निभाते हैं।

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योगिता बिष्ट उत्तराखंड की युवा पत्रकार हैं और राजनीतिक और सामाजिक हलचलों पर पैनी नजर रखती हैंं। योगिता को डिजिटल मीडिया में कंटेंट क्रिएशन का खासा अनुभव है।