Uttarakhand News: टिहरी में शुरू हुआ ऐतिहासिक पांडव नृत्य (Pandav Nritya)

Uttarakhand news: टिहरी में शुरू हुआ ऐतिहासिक पांडव नृत्य, द्वापर युग से जुड़ी है ये अनोखी परंपरा

Yogita Bisht
4 Min Read
पाडंव नृत्य

Uttarakhand news: पांडव नृत्य (Pandav Nritya) जो की देवभूमि उत्तराखंड का पारम्परिक लोक नृत्य है। गढ़वाल क्षेत्र में अलग-अलग समय पर इसका आयोजन होता है। टिहरी जिले के घनसाली में इसकी शुरूआत हो गई है। बड़ी ही धूमधाम से गांव वाले इसका आयोजन कर रहे हैं।

ऐतिहासिक है उत्तराखंड का पांडव नृत्य (Pandav Nritya)

हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड अपनी अलौकिक खूबसरती, प्राचीन मंदिर और अपनी संस्कृति के लिए विश्वविख्यात है। यहां की लोक कलाएं और लोक संगीत बरसों से भारत की प्राचीन कथाओं का बखान करती आ रही हैं। ऐसी ही एक प्राचीन परंपरा है पांडव नृत्य जो की देवभूमि उत्तराखंड का पारम्परिक लोक नृत्य है। उत्तराखंड में पांडव नृत्य पूरे एक माह का आयोजन होता है। गढ़वाल क्षेत्र में अलग अलग समय पर पांडव नृत्य का आयोजन होता रहता है , गांव वाले खाली समय में पाण्डव नृत्य के आयोजन के लिए बढ़ चढ़कर भागीदारी निभाते हैं।

Ghanshali

टिहरी में पाडंव नृत्य की हुई शुरूआत

उत्तराखंड के टिहरी जिले के कंडारस्यूं गांव में हर तीसरे वर्ष पांडव नृत्य(Pandav Nritya) का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है। जिसमें प्रवासी ग्रामीण भी बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। स्थानीय निवासी अनिल चौहान ने बताया कि भगवान हुणेश्वर और नागराज की धरती पर हर तीसरे वर्ष पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है।

Ghanshali

उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम का आयोजन सिर्फ मनोरंजन के लिए ही नहीं बल्कि क्षेत्र की खुशहाली और अन्न धन्न की वृद्धि के लिए मनाया जाता है। इस नौ दिवसीय आयोजन के बाद ही क्षेत्र में धान की कटाई मंडाई का कार्यक्रम किया जाता है।

गांव के जवान से लेकर बुजुर्ग तक परंपरा को बढ़ा रहे आगे

टिहरी जिले के घनसाली के पांडव नृत्य कार्यक्रम समिति के के अध्यक्ष दिनेश नेगी व डॉ देव सिंह कंडारी ने बताया कि वर्षों से चली आ रही इस धार्मिक परंपरा को आगे बढ़ाते हुए बासर पट्टी के कंडारस्यूं, पोनी और खिरबेल तोनी गांव के ग्रामीण आगे बढ़ा रहे हैं। गांव के जवान से लेकर बुजुर्ग तक हर व्यक्ति इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। इसके साथ ही स्थानीय लोगों का मानना है कि इस कार्यक्रम का आयोजन करने वाले पौराणिक लोगों का सिर्फ एक मात्र उद्देश्य था स्थानीय जनता को एकता के सूत्र में पिरोना।

Ghanshali

क्या है पाडंव नृत्य (Pandav Nritya)?

जनश्रुतियों मुताबिक पांडव अपने अवतरण काल में यहाँ वनवास, अज्ञातवास, शिव की खोज में और अन्त में स्वर्गारोहण के समय आये थे। ये भी मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों ने अपने विध्वंसकारी अस्त्र और शस्त्रों को उत्तराखंड के लोगों को ही सौंप दिया था और उसके बाद वे स्वार्गारोहिणी के लिए निकल पड़े थे।

उत्तराखंड के कई गांवों में उनके अस्त्र- शस्त्रों की पूजा होती है और पाण्डव नृत्य या पाडंव लीला का आयोजन होता है।इसमें पाडंवों के जीवन के बारे में बताया जाता है। स्थानीय कलाकार युधिष्ठर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव का रूप धारण कर परंपरागत परंपरागत लोक गीतों पर नृत्य करते हैं।


Share This Article
Follow:
योगिता बिष्ट उत्तराखंड की युवा पत्रकार हैं और राजनीतिक और सामाजिक हलचलों पर पैनी नजर रखती हैंं। योगिता को डिजिटल मीडिया में कंटेंट क्रिएशन का खासा अनुभव है।