Religious : यहां भगवान को डाला जाता है जेल में, जुर्म सिद्ध होने पर मिलती है कठोर सजा, जानें इस अनोखे मंदिर की कहानी - Khabar Uttarakhand - Latest Uttarakhand News In Hindi, उत्तराखंड समाचार

यहां भगवान को डाला जाता है जेल में, जुर्म सिद्ध होने पर मिलती है कठोर सजा, जानें इस अनोखे मंदिर की कहानी

Renu Upreti
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Here God is put in jail, if the crime is proven then he gets harsh punishment.

आमतौर पर अगर कोई मनुष्य गलती करता है तो उसे सजा दी जाती है, लेकिन अगर भगवान ही गलती करें तो क्या उन्हें सजा मिलनी चाहिए। अब आप सोचेंगे की भला भगवान कैसे गलती कर सकते हैं और करेंगे भी तो हमें कैसे मालूम पड़ेगा और हम उन्हें क्या सजा देंगे और कैसे देंगे?.तो आज हम आपको वही सजा बताने जा रहे हैं जो गलती करने पर देवी-देवताओं को मिलती है। देवी-देवताओं को सजा देने की ये अनोखी परंपरा छत्तीसगढ़ राज्य में देखी जाती है। यहां अदालत में कठघरे में भगवान को खड़ा कर दिया जाता है और जुर्म सिद्ध होने पर भगवान को सजा भी दी जाती है। इसे देव अदालत के नाम से जाना जाता है।

भंगाराम माई का मंदिर है न्यायालय

यहां रहने वाला आदिवासी समुदाय सदियों से इस प्रथा का पालन करता आ रहा है, आस्था और विश्वास पर टिका भगवान और इंसान का ये रिश्ता बेहद अहम है। बता दें कि सर्पिलाकार केशकाल घाट की वादियों में भंगाराम माई के मंदिर को देवी-देवताओं के न्यायालय के रूप में जाना जाता है। ऐसी प्रथा है कि भंगाराम की मान्यता के बिना क्षेत्र में स्थित नौ परगना में कोई भी भगवान कार्य नहीं कर सकते।

इस दरबार में महिलाओं का आना वर्जित

न्याय के इस दरबार में महिलाओं का आना वर्जित है। इस प्रथा में जिन देवी देवताओं की लोग उपासना करते हैं, यदि वो अपने कर्तव्यों का निर्वहन न करें तो उन्हें ग्रामीणों की शिकायत के आधार पर भंगाराम के मंदिर में सजा मिलती है। यहां भगवान को एक कठघरे में खड़ा किया जाता है। यहां भंगाराम न्यायाधीश के रूप में विराजमान होते हैं। यहां अपराधी को दंड और वादी के साथ न्याय किया जाता है।

मंदिर परिसर में अलग-अलग जेल

मंदिर परिसर में अलग-अलग जेल होती है। भंगाराम माता मंदिर के ठीक सामने खाली जगह है, जहां साल भर ग्रामीण परेशान करने वाले देवी-देवताओं को लाकर रखते है। जिनका फैसला भादो माह में होने वाले जात्रा के दिन होता है। जानकारी के अनुसार पहले भगवान को अस्थायी जेल में रखा जाता है। फिर वहां से बड़ी जेल ले जाया जाता है। भगवान द्वारा गांव में होने वाली किसी प्रकार की व्याधि, परेशानी को दूर न कर पाने की स्थिति में देवी-देवताओं को दोषी माना जाता है। विदाई स्वरूप उक्त देवी-देवताओं के नाम से चिन्हित बकरी, मुर्गी, सोने और चांदी समेत अन्य वस्तुओं के साथ गांव के देवी-देवता लाट, बैरंग, डोली आदि को लेकर ग्रामीण साल में एक बार लगने वाले भंगाराम जातरा में पहुंचते हैं।

बलि देने और भेंट चढ़ाने का विधान

आरोपी पक्ष की ओर से दलील पेश करने सिरहा, पुजारी, गायता, माझी, पटेल सहित ग्राम प्रमुख उपस्थित होते हैं। जहां दोनों पक्षों की गंभीरतापूर्वक सुनवाई के बाद आरोप सिद्ध होने पर फैसला सुनाया जाता है। मंदिर में देवी-देवताओं को खुश करने के लिए बलि देने और भेंट चढ़ाने का विधान है। सजा के तौर पर दोष सिद्ध होने के हाद देवी-देवताओं के लाट, बैरंग आंगा, डोली आदि को गड्ढे में डाला जाता है। जहां देवी-देवताओं को इंसाफ के लिए जाना जाता हो, अदालतों से लेकर आम परंपराओं में भी देवी-देवताओं की कसमें खाई जाती हैं, उन्हीं देवी-देवताओं को यदि न्यायालय की प्रक्रिया से गुजरना पड़े तो सच में यह अनूठी परंपरा है।

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