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पीने लायक नहीं बचा गंगा का पानी, चौंकाने वाली है ये रिपोर्ट

Yogita Bisht
4 Min Read
गंगा का पानी

गंगा भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक हैं। ये वही नदी है जिसकी पूजा हम मां मान कर करते हैं। लेकिन आज धीरे-धीरे हमारी जीवनधारा जहरीली होते जा रही है। यहां तक की गंगा का पानी भी पीने लायक नहीं बचा है।

लगातार प्रदूषित हो रहा गंगा का पानी

उत्तराखंड की ही नहीं पूरे देश की नदियां धीरे-धीरे प्रदूषित होती जा रही हैं। गंगा का पानी भी प्रदूषित होता जा रहा है। हाल ही में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एक चौंका देने वाली रिपोर्ट जारी की है। जिसमें सामने आया की एसटीपी यानी की सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकलने वाले पानी को एनजीटी यानी National Green Tribunal के मानकों के अनुरुप नहीं पाया गया।

रिपोर्ट के मुताबिक ओल्ड सस्पेंशन चमोली के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से सितंबर में निकले पानी में फीकल कोलीफॉर्म का अमाउंट 280 मोस्ट प्रोबेबल नंबर थी। जो अक्टूबर में 1600 मोस्ट प्रोबेबल नंबर पहुंच गई है। गंगोत्री में ये अमाउंट 540 से 920 एमपीएन है तो वहीं बद्रीनाथ में ये अमाउंट 920 एमपीएन तक है।

चौंकाने वाली है प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट

आपको बता दें कि फेकल कोलीफॉर्म एक बैक्टीरिया है जो आंतों में और मल में रहता है। जब पानी के नमूने में फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया ज्यादा अमाउंट में पाया जाता है तो इसका मतलब है कि पानी में मल पदार्थ मिला हुआ है। अब इसके भी मानक होते हैं National Green Tribunal के मुताबिक सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकलने वाले पानी में फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा 230 एमपीएन तक होनी चाहिए। जो दिए गए इन आंकडों से तो बिल्कुल मेल नहीं खाती है।

जल संस्थान के सीजीएम के मुताबिक जल संस्थान रूटीन में हर साल गंगा और गंगा की सहायक सभी नदियों के किनारे पड़ने वाले शहरों में एसटीपी की जांच करता है। उन्होंने बताया कि इसी कड़ी में जल संस्थान द्वारा गढ़वाल क्षेत्र के 6 जिलों बद्रीनाथ, रुद्रप्रयाग, श्रीनगर, हरिद्वार और देहरादून में मौजूद सभी STP में फ्लूएंट ट्रीटेड वॉटर के पैरामीटर की जांच के निर्देश दिए गए हैं।

पीने के लायक नहीं बचा गंगा का पानी

जल संस्थान के सीजीएम ने बताया कि इस ऑडिट में खास तौर से BOD (Biochemical Oxygen Demand) और फोकल कोलीफॉर्म की जांच की जाती है। BOD का पानी में मौजूद कार्बनिक substances को तोड़ने के लिए जरूरी ऑक्सीजन का अमाउंट होता है। अगर BOD ज्यादा है तो इसका मतलब है कि पानी में कार्बनिक पदार्थ ज्यादा हैं।

जिनको तोड़ने के लिए बहुत ज्यादा ऑक्सीजन चाहिए होती है और पानी में बीओडी ज्यादा होना प्रदूषण का संकेत है। इसी के साथ गंगा जो हमारे लिए एक मां के समान है आज उसका पानी ना तो पीने लायक बचा है ना ही अब नहाने लायक बचा है। PCB की इस रिपोर्ट ने साफ कर दिया कि गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए उठाए गए कदम काफी नहीं हैं।

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योगिता बिष्ट उत्तराखंड की युवा पत्रकार हैं और राजनीतिक और सामाजिक हलचलों पर पैनी नजर रखती हैंं। योगिता को डिजिटल मीडिया में कंटेंट क्रिएशन का खासा अनुभव है।