National : चुनाव आयोग का फैसला : मतदाता की पहचान उजागर नहीं होने देंगे, फुटेज साझा करने से किया इनकार - Khabar Uttarakhand - Latest Uttarakhand News In Hindi, उत्तराखंड समाचार

चुनाव आयोग का फैसला : मतदाता की पहचान उजागर नहीं होने देंगे, फुटेज साझा करने से किया इनकार

Sakshi Chhamalwan
4 Min Read
मतदाता की पहचान उजागर नहीं होने देगा चुनाव आयोग

मतदान दिवस की वेबकास्टिंग या सीसीटीवी फुटेज को सार्वजनिक करने की मांग को चुनाव आयोग ने पूरी तरह से नकार दिया है. आयोग ने स्पष्ट किया है कि इस मांग के पीछे लोकतंत्र की सुरक्षा के बजाय मतदाता की गोपनीयता को नुकसान पहुंचाने की मंशा छिपी हुई है.

मतदान केंद्रों की वेबकास्टिंग फुटेज साझा करने की मांग पर चुनाव आयोग सख्त

चुनाव आयोग का कहना है कि मतदान केंद्रों की वीडियो फुटेज साझा करने से यह स्पष्ट रूप से सामने आ सकता है कि कौन मतदाता मतदान करने आया और कौन नहीं. इससे मतदाताओं पर सामाजिक, राजनीतिक या व्यक्तिगत दबाव बन सकता है. कुछ असामाजिक तत्व या राजनीतिक दल यह जानकर कि किसी विशेष बूथ पर उन्हें कम वोट मिले, यह जानने की कोशिश कर सकते हैं कि किन मतदाताओं ने वोट नहीं दिया या उनके पक्ष में मतदान नहीं किया और उन्हें परेशान कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें : अब वोट डालना होगा और भी आसान!, चुनाव आयोग ने किए बड़े बदलाव, जानें आपके लिए क्या बदलेगा

चुनाव आयोग के सूत्रों ने बताया कि मतदान केंद्रों पर की जाने वाली वेबकास्टिंग पूरी तरह एक आंतरिक प्रबंधन उपकरण है और यह कोई कानूनी बाध्यता नहीं है. इस फुटेज को केवल 45 दिनों तक सुरक्षित रखा जाता है, जो चुनाव याचिका (ईपी) दायर करने की अधिकतम अवधि है. यदि इस अवधि में कोई याचिका दायर नहीं होती, तो फुटेज नष्ट कर दी जाती है. यदि याचिका दायर होती है, तो यह फुटेज अदालत के आदेश पर उपलब्ध कराई जाती है.

मतदान न करने वाले को भी गोपनीयता का अधिकार

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम भारत सरकार (2013) 10 एसएससी 1 मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि “मतदाता को मतदान न करने का भी अधिकार है और उसकी गोपनीयता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी कि मतदान करने वाले की.” इस निर्णय में अदालत ने कहा कि यह लोकतंत्र का अनिवार्य पहलू है कि मतदाता अपनी पसंद या नापसंद को पूरी गोपनीयता में रख सके.

मतदान दिवस की वीडियो रिकॉर्डिंग में मतदाताओं की पहचान, मतदान केंद्र में प्रवेश का क्रम और उनकी उपस्थिति की पुष्टि हो सकती है. यह फॉर्म 17A के समान है जिसमें मतदाता की क्रम संख्या, पहचान पत्र की जानकारी और हस्ताक्षर/अंगूठा छाप होता है. चूंकि फॉर्म 17A को केवल सक्षम न्यायालय के आदेश पर ही उपलब्ध कराया जा सकता है, इसलिए वीडियो फुटेज को भी इसी आधार पर ही साझा किया जा सकता है.

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 128 के अंतर्गत मतदान की गोपनीयता भंग करना एक दंडनीय अपराध है, जिसमें तीन माह तक की कैद, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. ऐसे में चुनाव आयोग की यह कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी है कि वह मतदाताओं की गोपनीयता की रक्षा करे.

चुनाव आयोग ने दोहराया है कि वह किसी भी राजनीतिक दल, व्यक्ति या संस्था के दबाव में आकर मतदाता की सुरक्षा और गोपनीयता से समझौता नहीं करेगा. चुनाव आयोग ने कहा कि जब तक किसी सक्षम न्यायालय द्वारा आदेश न दिया जाए, तब तक कोई भी वीडियो फुटेज किसी उम्मीदवार, एनजीओ या तीसरे पक्ष को नहीं दी जाएगी.

Share This Article
Sakshi Chhamalwan उत्तराखंड में डिजिटल मीडिया से जुड़ीं युवा पत्रकार हैं। साक्षी टीवी मीडिया का भी अनुभव रखती हैं। मौजूदा वक्त में साक्षी खबरउत्तराखंड.कॉम के साथ जुड़ी हैं। साक्षी उत्तराखंड की राजनीतिक हलचल के साथ साथ, देश, दुनिया, और धर्म जैसी बीट पर काम करती हैं।