Haldwani news: रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान केंद्र यानी DRDO Haldwani ने उत्तराखंड के जंगलों में मिलने वाले चीड़ के पिरुल के पत्तों से बिजली और बायोगैस तैयार की है।
पिरुल के पत्तों से तैयार की बिजली और बायोगैस
DRDO Haldwani ने कूड़ा-कचरा और बायोमेडिकल वेस्ट के साथ-साथ उत्तराखंड के जंगलों में मिलने वाले चीड़ के पिरुल के पत्तों से बिजली और बायोगैस तैयार किया है। जो भविष्य में ऊर्जा के क्षेत्र में कारगर साबित होगा।
ग्रामीणों से खरीदे जा रहे पिरुल के पत्ते
केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने जानकारी देते हुए बताया कि पिरुल से उत्पाद तैयार करने के लिए वन विभाग ग्रामीणों से दो रुपए किलो पिरूल खरीद रहा है। डिबेर क वैज्ञानिकों ने बायोमास गेसिफिकेशन प्लांट फॉर ट्रेड पाइन नीडल्स इजाद किया है। इस मशीन से 10 से 15 किलो सूखे पिरुल की मदद से 10 किलोवाट तक बिजली का उत्पादन किया जा सकता है।
एक घंटे में 25 किलो कूड़े को किया जा सकता है कम
भट्ट ने कहा कि प्लाज्मा आधारित गैसीकरण प्रणाली के तहत कचरा, प्लास्टिक, रबर आदि अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण के लिए प्लाज्मा गैसीफिकेशन संयंत्र स्थापित किया गया है। इस मशीन से एक घंटे में 25 किलो कूड़े को 95 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। इस इकोफ्रेंडली मशीन से खतरनाक कूड़े, नॉन रिसाइकिलेबल वेस्ट, मेडिकल वेस्ट आदि को प्लाज्मा आधारित गैसीकरण से राख में तब्दील किया जा सकता है।
लोगों को मिल रहा रोजगार
DRDO Haldwani के इस योजना के तहत चीड़ प्रभावित क्षेत्रों में लोगों के लिए स्वरोजगार की राह खुल गई है। जानकारी के अनुसार एक प्रोजेक्ट में कम से कम छह लोगों को रोजगार मिलने के साथ ही चीड़ के पिरुल एकत्र करने का अलग कमाई का जरिया बन रहा है।