भारत देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का आज 65 वां जन्मदिन है। वह देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति महिला है। राष्ट्रपति मुर्मू का जन्म 20 जून, 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के उपरबेड़ा गांव में एक संथाली आदिवासी परिवार में हुआ था। 25 जुलाई 2022 को उन्होनें भारत के 15 वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी। लेकिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का ये सफर इतना आसान नहीं था। यहां तक पहुंचने से पहले उन्होनें काफी दुख दर्द झेले हैं और लंबा संघर्ष किया है। आइये आपको बताते हैं देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की कहानी।
आदिवासी परिवार में जन्म
ओडिशा के मयूरगंज जिले के बैदपोसी गांव में 20 जून 1958 को द्रौपदी मुर्मू का जन्म हुआ था। वो संथाल आदिवासी जातीय समूह से संबंध रखती है। उनके पिता का नाम बिरांची नारायण टुडू है। उनके पिता एक किसान थे। इसके साथ ही द्रौपदी के दो भाई भगत टुडू और सरैनी टुडू हैं। द्रौपदी का बचपन बेहद अभावों और गरीबी में बीता था। लेकिन अपनी स्थिति को उन्होंने अपनी मेहनत के आड़े नहीं आने दिया।
कॉलेज में पढ़ने वाली गांव की पहली लड़की
द्रौपदी मुर्मू की स्कूली पढ़ाई गांव में हुई। साल 1969 से 1973 तक वह आदिवासी आवासीय विद्यालय में पढ़ीं। इसके बाद स्नातक करने के लिए उन्होंने भुवनेश्वर के रामा देवी वुमंस कॉलेज में दाखिला ले लिया। मुर्मू अपने गांव की पहली लड़की थीं, जो स्नातक की पढ़ाई करने के बाद भुवनेश्वर तक पहुंची।
शादी हुई फिर खोये बच्चे
बताया जाता है कि 1980 के दशक में द्रौपदी मुर्मू की शादी श्याम चरण मुर्मू से हुई। जिसके ठीक एक साल बाद उन्होनें एक बेटी को जन्म दिया। लेकिन तीन साल बाद मुर्मू को जिंदगी में पहला बड़ा झटका मिला था । दरसअल, 1984 में उनकी बेटी की मौत हो गई। धीरे- धीरे मुर्मू इस दुख से उबर पाई। जिसके बाद उन्होनें दो बेटों को जन्म दिया और एक बेटी को जन्म दिया। लेकिन उनका जिंदगी का बुरा दौर शुरू हुआ और 2009 में राजधानी भुवनेश्वर के पत्रपदा इलाके में उनका 25 साल का जवान बेटा मुर्मू भाई के घर पर मृत पाया गया। बेटे की मौत के सदमे से द्रौपदी अभी उभर भी नहीं पाई थीं कि उन्हें दूसरी झकझोर देने वाली खबर 2013 में मिली जब उनके दूसरे बेटे की मौत एक सड़क दुर्घटना में हो गई। द्रौपदी के दो जवान बेटों की मौत चार साल के अंदर हो चुकी थी। वह पूरी तरह से टूट चुकीं थीं। हालांकि उन्होनें इस बुरे दौर से उबरने के लिए अध्यात्म का सहारा लिया।
1997 में रखा था राजनीति में कदम
द्रौपदी मुर्मू 1997 में राजनीति में आई थी। इससे पहले वह शिक्षिका थी। ओडिशा के राइरांगपुर जिले में वह पार्षद के चुनाव में जीतीं। साल 2000 में उन्होनें विधानसभा चुनाव लड़ा और राइरांगपुर विधानसभा से विधायक चुने जाने के बाद उन्हें बीजद और भाजपा गठबंधन वाली सरकार में स्वतंत्र प्रभार का राज्यमंत्री बनाया गया।
2002 में बनी राज्यमंत्री
2002 में मुर्मू को ओडिशा सरकार में मत्स्य एवं पशुपालन विभाग का राज्यमंत्री बनाया गया। 2006 में उन्हें भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। 2009 में वह राइरांगपुर विधानसभा से दूसरी बार भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतीं। इसके बाद 2009 में वह लोकसभा चुनाव भी लड़ीं, लेकिन जीत नहीं पाईं। 2015 में द्रौपदी को झारखंड का राज्यपाल बनाया गया। 2021 तक उन्होंने राज्यपाल के तौर पर अपनी सेवाएं दीं हैं। वहीं 25 जुलाई 2022 को उन्होनें राष्ट्रपति पद की शपथ ली है।
2014 में छूटा पति का साथ
द्रौपदी मुर्मू एक तरफ जहां लगातार कई पदों में रहकर अपनी सेवाएं दे रही थी तो वहीं वो अपने बच्चों को खो देने के दर्द से भी जूझ रही थी। 2009 में पहला बेटा और 2013 में दूसरा बेटा खो देने के ठीक एक साल बाद उन्होनें 2014 में अपने पति श्यामाचरण मुर्मू को भी खो दिया था। बताया जाता है कि श्यामाचरण मुर्मू को दिल का दौरा पड़ा था। उन्हें घरवाले अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। श्यामाचरण बैंक में काम करते थे। अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के परिवार में केवल बेटी इतिश्री मुर्मू हैं। इतिश्री बैंक में नौकरी करती हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की कहानी प्रेरणादायक
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने एक आदिवसी समाज से उठकर गांव की पहली कॉलेज जाने वाली लड़की से लेकर पार्षद, मंत्री और राज्यपाल से राष्ट्रपति बनने का सफर तय किया है। उनका जज्बा काबिले तारीफ है जिसने उन्हें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। किसी आम इंसान की जिदंगी में एक के बाद एक इतने झटके मिले होते तो वो पूरी तरह टूट गया होता लेकिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू थी जो हारी नहीं। उनके इसी मनोबल और सकारात्क सोच, मेहनत ने उन्हें आज भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति के पद तक पहुंचाया है। उनकी ये कहानी कई लोगों को प्रेरित करती है।