देहरादून (मनीष डांगवाल): जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाॅक प्रमुख पदों पर चुनाव की सगर्मियां जोरों पर हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही जीत का दावा कर रही हैं। इन चुनावों में सदस्यों के वोटों की खरीद-फरोख्त भी जमकर होती है। इस चुनाव में पहले यह व्यवस्था की सदस्य के साथ एजेंट वोट डालने जा सकता था। पिछले बार तक सदस्यों को मोबाइल लेजाने की अनुमति भी दी गई थी, लेकिन इस बार इन सब पर पाबंदी रहेगी। इस फैसले से कई जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाॅक प्रमुख पदों के दावेदारों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
उम्मीदवारों की मुश्किलें बढ़ी
जिला पंचायत अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और ब्लाॅक प्रमुख, कनिष्ठ प्रमुख के चुनाव के नये नियमों से उम्मीदवारों की धड़कनें बढ़ाना तय है। निर्वाचन आयुक्त चंद्रशेखर भट्ट का कहना कि शैक्षिक योग्यता की अनिवार्यता के बाद इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, ब्लाॅक और कनिष्ठ प्रमुख के चुनाव मंे किसी भी सदस्य को वोट देने के दौरान सहयोगी नहीं मिलेगा।
विकल्प नहीं बचा
पहले देखा जाता था कि पढ़ा-लिखा प्रत्याशी भी अनपढ़ बनकर अपना वोट सहयोगी से करा देता था, लेकिन इस बार शैक्षिक योग्यता के नए नियम के तहत किसी को वोट डालने के लिए सहायोगी नहीं मिलने की संभावनाएं पहले ही समाप्त हो गई हैं। ऐसे में उम्मीदवारों के सामने तो संकट हो गया है। उनके पास किसी पर भरोसा करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा।
नहीं चलेगा पता, किसे वोट दिया
उन्होंने कहा कि अगर कोई सदस्य विकलांग हो या ब्लाइंड हो, उसे ही वोट डालने के लिए सहायोगी मिलेगा। निर्वाचन आयुक्त का कहना कि चुनाव को पादर्शी बनाने के लिए सदस्यों की तलाशी भी ली जाएगी, ताकि सदस्य फोन या कैमरे से मतदान करने के दौरान मतपत्र की फोटो न ले सके। इससे वह यह सुबूत भी पेश नहीं कर पाएगा कि उसने किसे वोट दिया है।