Entertainment : श्याम बेनेगल के जाने से सिनेमा के एक युग का हुआ अंत, जानें फिल्मकार का आइकॉनिक सफर - Khabar Uttarakhand - Latest Uttarakhand News In Hindi, उत्तराखंड समाचार

श्याम बेनेगल के जाने से सिनेमा के एक युग का हुआ अंत, जानें फिल्मकार का आइकॉनिक सफर

Uma Kothari
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श्याम बेनेगल एक ऐसा नाम जिसके जिक्र के बिना भारतीय सिनेमा अधूरा है। मशहूर फिल्म निर्माता और निर्देशन श्याम बेनेगल ने 23 दिसंबर को 90 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके निधन के साथ भारतीय सिनेमा का सुनहरा अध्याय भी खत्म हो गया। 14 दिसंबर 1934 को जन्मे श्याम बेनेगल ने भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा दी। उन्हें पैरेलल सिनेमा का जनक कहा जाता है और रियलिस्टिक सिनेमा(Realistic Cinema) के पितामह के तौर पर उनका नाम इतिहास में दर्ज है।

श्याम बेनेगल का बचपन से ही सिनेमा की तरफ झुकाव

श्याम बेनेगल का झुकाव बचपन से ही सिनेमा की तरफ था। इस बात का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं की 12 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली फिल्म बना दी थी। जी हां ये सच है और उस बच्चे की इसी लगन ने उन्हें भारतीय सिनेमा का पैरेलल सिनेमा जनक बना दिया।
1974 में आई उनकी पहली फीचर फिल्म “अंकुर” ने भारतीय सिनेमा में एक नई लहर ला दी। ये फिल्म आंध्र प्रदेश के एक दलित दंपत्ति की कहानी थी। इसके बाद आईं “निशांत,” “मंथन,” और “कलयुग” जैसी फिल्में, जिन्होंने समाज के कड़वे सच को सामने रखा।
क्या आप जानते हैं।

श्याम की फिल्मों ने दुनिया को दिखाया आयना

“मंथन” को भारत के 5 लाख किसानों ने आर्थिक सहयोग देकर बनाया था। ये फिल्म श्वेत क्रांति की कहानी थी। श्याम बेनेगल सिर्फ एक निर्देशक नहीं, बल्कि एक विचारधारा थे। उनकी फिल्मों ने समाज को सोचने पर मजबूर किया। चाहे वो “मंडी” फिल्म हो, जो हैदराबाद के एक वैश्यालय की कहानी थी, या “सरदारी बेगम,” जिसमें समाज के दबे-कुचले पहलुओं को उजागर किया गया।

टीवी की दुनिया में भी रचा इतिहास

श्याम बेनेगल ने सिर्फ सिनेमा में ही नहीं, बल्कि टीवी की दुनिया में भी इतिहास रच दिया बेनेगल की “भारत एक खोज,” सीरीज जो पंडित नेहरू की किताब “डिस्कवरी ऑफ इंडिया” पर आधारित थी, आज भी भारतीय टेलीविजन के सबसे बेहतरीन कार्यक्रमों में गिनी जाती है। इसके अलावा, उन्होंने “कथा सागर” और “यात्रा” जैसे शो बनाए, जो भारतीय संस्कृति और समाज को बेहद खूबसूरती से दिखाते हैं।
यही नहीं बेनेगल अतरनाद के साथ बड़े पर्दे पर लौट आए। इसके बाद उन्होंने सूरज का सातवां घोड़ा, सरदारी बेगम, वेलकम टू सज्जनपुर और बेल डन अब्बा जैसी फिल्मों का निर्देशन किया। इसी के साथ उन्होंने टीवी मिनीसीरीज संविधान द मेकिंग ऑफ द कांस्टिट्यूशन ऑफ इंडिया का भी निर्देशन किया।

श्याम की कला हमेशा रहेगी जीवित

श्याम बेनेगल का योगदान सिर्फ फिल्में बनाने तक सीमित नहीं था। उन्होंने सिनेमा को समाज का आईना बनाया। उनके इसी काम के लिए उन्हें कई बड़े सम्मानों से नवाजा गया। उन्हें 1976 में पद्मश्री, 1991 में पद्मभूषण, 2005 में दादा साहेब फाल्के, 2013 में अक्किनेकी इंटरनेशनल फाउंडेशन ने एएनआर नेशनल अवॉर्ड से पुरस्कृत किया।

इसके अलावा बेनेगल को 18 नेशनल फिल्म अवॉर्ड एक फिल्मफेयर अवॉर्ड और नंदी अवॉर्ड से भी नवाजा गया। श्याम बेनेगल ने भारतीय सिनेमा को जो ऊंचाई दी, वह हमेशा याद की जाएगी। वह भले ही हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी फिल्में, उनके विचार, और उनकी कला हमेशा जीवित रहेगी।

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