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Covid-19 : आसानी से कम नहीं होगा कोरोना का असर, इतने साल तक सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी

Reporter Khabar Uttarakhand
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breaking uttrakhand newsअमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का एक रिसर्च पेपर साइंस जर्नल में छपा है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के वैज्ञानिकों को इस बात का अंदेशा है कि लापरवाही हुई तो वायरस और अधिक घातक और जानलेवा रूप धारण कर लेगा। उनका मानना है कि दुनिया कोरोना वायरस से जूझ रही और सामाजिक दूरी का पालन कर रही है. लेकिन इसको इतनी जल्दी समाप्त नहीं किया जा सकता। दुनिया को आने वाले कम से कम दो साल यानी 2022 तक सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना होगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि वायरस के खिलाफ जंग में यह पहला चरण है। वायरस को कमजोर पड़ता देख लॉकडाउन खुलता है और नियमों को दरकिनार किया जाता है तो वायरस फिर सक्रिय हो सकता है। तब फिर से लाखों लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर मॉडल के जरिए देखा है कि सामाजिक दूरी का सख्ती से पालन होगा तभी वायरस को दोबारा फैलने से रोका जा सकता है। इस तरह के परिणाम 2003 में फैले सार्स-सीओवी-1 में भी देखने को मिला था। वैज्ञानिकों का मानना है कि वायरस इंफ्लूएंजा के तौर पर दुनियाभर में रहे। इस आधार पर कम से कम मौजूदा हालात को देखते हुए 20 सप्ताह यानी 140 दिन तक हर हाल में सावधानी बरतनी होगी।

लॉकडाउन की वजह से कोरोना वायरस को रोकने में क्या सफलता मिली है, इसका आकलन करने के लिए दो हफ्ते इंतजार करने का सुझाव विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दिया है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार इस आकलन के बाद ही प्रतिबंधों को ढीला करना चाहिए। नई रणनीति जारी करते हुए कहा कि महामारी की रफ्तार और व्यापकता को भांपते हुए निर्णय लेने चाहिए। संक्रमण से प्रभावित कई देशों ने लॉकडाउन लगाया है, वे अब इसे हटाने कर जनजीवन सामान्य करने पर विचार कर रहे हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुसार दो हफ्ते के समय में संक्रमण के नए जोखिम पहचाने जा सकेंगे।

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