Chamoli : चमोली : सफल हुआ केवर गांव के काश्तकारों का लुप्तप्राय पारंपरिक बीजों के उत्पादन का प्रयोग - Khabar Uttarakhand - Latest Uttarakhand News In Hindi, उत्तराखंड समाचार

चमोली : सफल हुआ केवर गांव के काश्तकारों का लुप्तप्राय पारंपरिक बीजों के उत्पादन का प्रयोग

Reporter Khabar Uttarakhand
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चमोली : चमोली के विकास खंड नारायणबगड़ में केवर गांव के काश्तकारों ने एक अभिनव प्रयोग करते हुए लुप्त हो गये पारंपरिक बीजों को खोजकर उनका पुनः उत्पादन करने में बेहतरीन सफलता अर्जित की है।जो कि क्षेत्र में आश्चर्यजनक और दूसरे लोगों के लिए भी अनुकरणीय बन रहा है।और यहां के काश्तकारों के चेहरों पर उनकी इस सफलता का असर साफ देखा जा सकता है।

दरअसल बीते दौर में पर्वतीय किसानों ने भी उपजाऊ भूमि में अंधाधुंध रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के भारी मात्रा में प्रयोग करने के कारण पर्वतीय क्षेत्रों की पोषक तत्वों से भरपूर उत्पानों को पैदा करने वाली भूमि धीरे धीरे बंजर भूमि में तब्दील होती गई और हालात यह पैदा हो गये कि अब उन्हीं खेतों में रसायनिक बीजों का भी सही से उत्पादन नहीं हो पा रहा है। बाजार के रसायनिक बीजों और रसायनों का अधिकाधिक प्रयोग करने के कारण यहां के जो पारंपरिक पोषक युक्त बीज होते थे वे धीरे-धीरे खोने लगे। ऐसे में पहाड़ी इलाकों के किसानों का हताश और निराश होना लाजिमी था।

उत्तरांचल यूथ एंड रूरल डेवलपमेंट सेंटर ने किया कमाल

अब नाबार्ड बैंक के सहयोग से उत्तरांचल यूथ एंड रूरल डेवलपमेंट सेंटर ने केवर गांव में शून्य लागत से प्राकृतिक खेती परियोजना के तहत ऊंचाई वाले इलाकों से पुराने पारंपरिक बीजों को खोजकर यहां के काश्तकारों को दिए। सबसे पहले यहां के लोगों को खेती में रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं करने का संकल्प दिलाया गया और विलुप्तप्राय पारंपरिक बीजों का संरक्षण व उत्पादन, शुद्ध जैविक खेती, रसायन मुक्त खेती कर पुराने पारंपरिक उत्पादनों को ही आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया और किसानों को विशेषज्ञों की देखरेख में देशी गाय यानी बद्री गाय के गोबर और गोमूत्र से जैविक खाद, कीटनाशक तैयार करके उपयोग करना जैसे बीजामृत, घनजीवामृत, जीवामृत, सप्त धान्यांकुर, दशपर्णी अर्क, ब्रह्मास्त्र, नीमास्त्रा आदि का प्रयोग करने के गुर सिखाए।

ह बीज आज ऊंचाई वाले इलाकों में भी समाप्त हो चुके हैं

केवर गांव के लोगों ने संस्था के माध्यम से पुराने पोषक युक्त पारंपरिक बीजों काला धान, चिणाईं, कौणीं आदि को प्राप्त कर ऊंचाई वाले क्षेत्रों में होने वाले उत्पादनों का बेहतरीन उत्पादन किया है। यह बीज आज ऊंचाई वाले इलाकों में भी समाप्त हो चुके हैं। केवर गांव की महिलाओं ने बताया कि उन्होंने खेती में रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं करने की कसमें खाने के बाद अब शुद्ध जैविक खेती करने का संकल्प लिया है।

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