हिंदू धर्म में अहोई अष्टमी के व्रत का काफी महत्व है। यह त्योहार कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस व्रत को महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन की कामना के लिए रखती हैं। कुछ महिलाएं संतान की सुख की प्राप्ति की कामना के लिए करती है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान का मंगल होता है।
निर्जला रहकर करते हैं अहोई माता की पूजा
इस दिन अहोई माता की पूजा की जाती है। पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। कुछ महिलाएं शाम के समय तारा देखकर व्रत का समापन करती हैं तो कुछ महिलाएं चांद को देखकर अहोई अष्टमी के व्रत का समापन करती है। अहोई व्रत का पूरा लाभ तभी मिलता है जब इस व्रत को पूर्ण नियमों के साथ रखा जाता है। आइये जानते हैं अहोई व्रत के क्या नियम होते हैं।
अहोई अष्टमी व्रत के नियम
- यह व्रत सूर्योदय के साथ शुरु होता है और इसका समापन अपनी परंपरा के अनुसार तारे या चांद के दर्शन कर, अर्घ्य देने के बाद होता है।
- करवा चौथ की तरह ही निर्जला ही अहोई अष्टमी का व्रत भी रखा जाता है।
- इस दिन शाम के समय अहोई माता की पूजा अर्चना करने का विधान है। इसलिए अहोई अष्टमी के दिन शाम के समय अहोई माता की तस्वीर की स्थापना करें और धूप औरप दीपक जलाकर पूजा अर्चना करें।
- शाम के समय अहोई माता को 8 पूड़ी, 8 मालपुआ या गुलगुले, दूध और चावल का भोग लगाएं। पूजा के समय एक कटोरी में गेंहू भी रखें। अहोई अष्टमी व्रत की कथा का पाठ जरुर करें। बिना कथा के ये व्रत अधूरा माना जाता है।