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उत्तराखंड Exclusive : विकास की बात से हटकर अब जुम्मा, मुस्लिम पर क्यों आ गए पुष्कर

Reporter Khabar Uttarakhand
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# Uttarakhand Assembly Elections 2022

# Uttarakhand Assembly Elections 2022देहरादून : उत्तराखंड में चुनाव अब विकास के मसले से हटकर फिर एक बार जुमे की छुट्टी और मुस्लिम युनिवर्सिटी पर आकर टिक गया है। बीजेपी की राजनीति के लिए ये मुद्दे जितने मुफीद हैं, कांग्रेस के लिए उतने ही परेशान करने वाले हैं। हालांकि ये बीजेपी की रणनीतिक प्लानिंग पर भी सवाल उठाते हैं। दरअसल बीजेपी पिछले पांच सालों से राज्य मे विकास के मुद्दे पर वोट मांगती रही है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य में डबल इंजन के विकास का दावा करते नहीं थकते तो वहीं वो इन चुनावों में भी विकास के मुद्दे पर ही वोट मांगने की अपील करते नजर आते हैं।

बीजेपी ने भले ही राज्य में तीन मुख्यमंत्री बदले हों लेकिन सच ये भी है कि ये तीनों ही मुख्यमंत्री बीजेपी के डबल इंजन वाले विकास के मुद्दे को नहीं छोड़ पाए। बीजेपी पिछले पांच सालों से जिस विकास के मसले पर अपनी पीठ थपथपाती आई है अब शायद उसकी वही विकास का मॉडल उसे अपनी चुनावी रणनीति में फिट बैठता नहीं दिख रहा है। संभवत यही वजह है कि बीजेपी अब कांग्रेस को विकास नहीं बल्कि मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जुमे की नमाज की छुट्टी पर घेर रही है।
या इसे यूं भी कह सकते हैं कि उत्तराखंड में विकास की राजनीति अब जुमे की छुट्टी और मुस्लिम यूनिवर्सिटी पर आकर टिक गई है। बीजेपी के नेता और प्रवक्तो तो छोड़िए खुद सीएम पुष्कर सिंह धामी भी अब इसी लाइन पर आगे बढ़ते दिख रहें हैं। पुष्कर सिंह धामी लगातार इस मुद्दे पर बयान दे रहें हैं और हरीश रावत पर निशाना साध रहें हैं।

ऐसा क्या हुआ कि जिस विकास को बीजेपी जीत का गारंटी मान रही थी अचानक उस राजनीतिक रणनीति में बदलाव कर बीजेपी जुमे की छुट्टी और मुस्लिम यूनिवर्सिटी पर फोकस करने लगी है। हालांकि कांग्रेस के लिए ये दोनों ही मसले सेल्फ गोल करने जैसे हैं लेकिन बीजेपी का इस मसले को लपकना इस बात का साफ संदेश है कि उत्तराखंड के चुनावों में भी बीजेपी अन्य राज्यों की तरह हिंदु मुस्लिम के मसलो को भुनाने की कोशिश में लगी है। चुनावी बयानबाजियों में पलायन, बंदरों से बर्बाद होनी वाली खेती, कम होती कृषि भूमि, उपज का उचित मूल्य, कृषि उत्पादों की उचित मार्केटिंग, हर घर तक स्वास्थ सुविधा, शिक्षा में सुधार जैसे मसले दबने लगे हैं।

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