Big News : तीरथ के सामने चुनौतियां अपार, महीने दस और कंधों पर बड़ा भार - Khabar Uttarakhand - Latest Uttarakhand News In Hindi, उत्तराखंड समाचार

तीरथ के सामने चुनौतियां अपार, महीने दस और कंधों पर बड़ा भार

Reporter Khabar Uttarakhand
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tirath singh rawat

tirath singh rawat

 

बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने उत्तराखंड में सियासी उलटफेर कर सबको चौंका दिया है। ये फैसला लेकर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने बीजेपी के प्रदेश नेताओं और कार्यकर्ताओं तक को हैरान करने का मौका दे दिया है। तीरथ सिंह रावत का नाम शुरुआत से ही किसी चर्चा में नहीं था। फिलहाल तीरथ सिंह रावत राज्य के अगले मुख्यमंत्री के तौर पर कुर्सी संभालेंगे।

तीरथ सिंह रावत के सामने काम करने के लिए शुरुआती दौर में 10 महीने ही होंगे। मार्च का महीना आधा बीतने को है। उम्मीद है कि नवंबर या फिर दिसंबर आते आते राज्य में चुनाव आचार संहिता लग जाएगी। ऐसे में तीरथ सिंह रावत को अगले तकरीबन दस महीने का समय मिलेगा जिसमें उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

लोकप्रिय योजनाओं की शुरुआत

तीरथ सिंह रावत को अगले दस महीनों में लोकप्रिय योजनाओं की शुरुआत करनी होगी। हालांकि ये बेहद मुश्किल काम होगा क्योंकि इस साल का बजट भी पास हो चुका है। ऐसे में तीरथ सिर्फ घोषणाएं ही कर पाएंगे।

इन घोषणाओं में रोजगार और किसानी खेती से जुड़े मसले को जोड़ना होगा। चुनौती इस बात की भी होगी कि इन योजनाओं का सीधा लाभ लोगों तक तुरंत पहुंचे।

अफसरशाही पर नियंत्रण –

तीरथ सिंह रावत को उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों के पुराने रोग से छुटकारा पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है। दरअसल उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के ऊपर अफसरशाही का हावी हो जाना साधारण बात है। त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ भी ऐसा ही हुआ। अब तीरथ सिंह रावत को इस रोग की दवा तलाश करनी होगी।

जनता के बीच पहुंचना-

तीरथ सिंह रावत को जनता के बीच एक लोकप्रिय छवि बनानी होगी। जनता के बीच कार्यक्रमों में पहुंचना होगा। हालांकि तीरथ सिंह रावत की छवि एक लो प्रोफाइल नेता की है और वो लोगों को सर्वसुलभ होते रहें हैं लेकिन ऐसा मुख्यमंत्री बनने के बाद भी होता रहेगा ये देखना होगा।

विधायकों को एकजुट रखना

उत्तराखंड बीजेपी में गुटबाजी को थामे रखना भी तीरथ सिंह रावत के लिए बड़ी चुनौती हो सकती है। पिछले चार सालों में जो सियासी माहौल रहा है उसके बाद विधायक अपनी उपेक्षा महसूस होते ही विद्रोह की आवाज उठा सकते हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री रहते हुए कई बार विधायकों ने ऐसी कोशिश की भी। हालांकि संगठन की मर्यादा ने उन्हें रोके रखा। लेकिन चुनावी साल में भी ऐसा हो ये नहीं कह सकते। लिहाजा 57 के कुनबे को संतुष्ट रखना तीरथ सिंह रावत के लिए एक चुनौती मानी जा सकती है।

त्रिवेंद्र के फैसलों पर रुख भांपना-

तीरथ सिंह रावत के लिए त्रिवेंद्र सरकार में लिए गए फैसलों पर जनता का मूड भांपना होगा। इसमें सबसे पहला काम होगा गैरसैंण कमिश्नरी को लेकर जनता का मन टटोलना। जिस तरह से अल्मोड़ा को कुमाऊं से अलग किया गया है उससे लोगों का एक वर्ग खासा नाराज है। अब तीरथ को इस चुनौती से पार पाना होगा।

मंत्रियों के साथ तालमेल

तीरथ सिंह रावत को अपने मंत्रियों के साथ तालमेल बैठाने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी। पिछले चार सालों में सतपाल महाराज, हरक सिंह और सुबोध उनियाल के साथ त्रिवेंद्र रावत बहुत अच्छी ट्यूनिंग नहीं बैठा पाए थे। यही वजह रही कि इन मंत्रियों के विभागों में कोई ऐसा काम नहीं हुआ जिसके बल पर सरकार चुनावों में जा सके। अगर तीरथ मंत्रिमंडल में बदलाव करते हैं तो इससे उपजे असंतोष को भी थामना होगा। वहीं अब कई विधायकों को उम्मीद होगी कि वो कैबिनेट में शामिल हो सकते हैं। क्योंकि त्रिवेंद्र कैबिनेट में मंत्रियों की संख्या पूरी नहीं हो पाई थी।

कुमाऊं गढ़वाल के समीकरण साधना

तीरथ सिंह रावत गढ़वाल के सांसद हैं और अब उन्हें कुमाऊं की जनता का दिल जीतने के लिए मशक्कत करनी होगी। दरअसल कुमाऊं में अच्छी पकड़ रखने वाले अजय भट्ट का नाम भी मुख्यमंत्री की रेस में था। ऐसे में लोगों को उम्मीदें थीं जो अब धराशायी हुईं हैं। पिछले चार सालों में त्रिवेंद्र सिंह रावत भी कुमाऊं पर कुछ अधिक फोकस नहीं कर पाईं। दिलचस्प ये भी है कि हरीश रावत कुमाऊं में खासे सक्रिय रहें हैं।

चुनाव की तैयारी

अगले दस महीनों में राज्य में चुनावी बिगुल बज जाएगा। ऐसे में तीरथ सिंह रावत को चुनावी तैयारी करनी होगी। राज्य में बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ है। ऐसे में इस परफार्मेंस को दोहराने के लिए तीरथ सिंह रावत को पार्टी को तैयार करना होगा।

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