टिहरी गढ़वाल : कोरोना की दहशत औऱ लॉकडाउन ने बहुतों की जिंदगी तबाह की। कइयों की जिंदगी छीन ली और कइयों को अनाथ किया। वहीं इस लॉकडाउन ने बहुत लोगों को बहुत कुछ सिखाया खासतौर पर युवा पीढ़ी को। जी हां इसके उदाहरण उत्तराखंड में कई जगह देखने को मिला। जो नौकरी की तलाश में दूसरे राज्य और देश गए थे वो कोरोना के चलते पहाड़ लौटे और उन्होंने स्वरोजगार शुुरु किया। खाली गांव फिर से चहचहाने लगे।
टिहरी जिले के तिवाड़ गांव निवासी आशीष डंगवाल मिसाल
जी हां ऐसी ही कुछ कहानी है टिहरी जिले के तिवाड़ गांव निवासी आशीष डंगवाल की। जो सिंगापुर के रेस्टोरेंट में नौकरी करते थे वो शेफ थे। उनकी सैलरी भारतीय मुद्रा में एक लाख रुपये महीने के करीबन थी लेकिन कोरोना और लॉकडाउन ने आशीष की जिंदगी ही बदल दी और रहने का ढंग भी।
27 साल के आशीष बीती फरवरी में अपने गांव लौटे
जी हां कोरोना और लॉकडाउन के बाद गांव लौटे आशीष डंगवाल अब बकरी और मुर्गी पालन कर खाली समय को भर रहे हैं जो गांव लौटे अन्य युवाओं और प्रवासियों को संदेश दे रहे हैं। सिंगापुर के एवरेस्ट किचन रेस्तरां में शेफ रहे 27 साल के आशीष बीती फरवरी में अपने गांव लौट आए थे।
माता-पिता का हो चुका है निधन
जानकारी मिली है कि बहुत पहले आशीष के माता पिता का निधन हो गया था। जिसके बाद आशीष पर दिव्यांग भाई, उनके तीन बच्चों और भाभी की जिम्मेदारी आ गई लेकिन उन्होंने हौसला नहीं हारा और वो सिंगापुर नौकरी करने गए। आशीष अविवाहित हैं।
आशीष को खाली बैठना नगवार गुजरा
लॉकडाउन के कारण होटल-रेस्टोरेंट बंद हो गए तो वापस गांव लौटे लेकिन खाली बैठना उन्हें नगवार गुजरा और उन्होंने बकरी और मुर्गी पालने की ठानी और बकर-मुर्गी पालक बन गए। आशीष ने शुरुआत में दो लाख रुपये खर्च कर 1 गाय, 4 मुर्गी और 10 बकरियां खरीदीं। जिनकी हर कोई तारीफ कर रहा है।
इस पर आशीष का कहना है कि जैसे ही कोरोना खत्म होने के बाद दुनिया जब फिर से पटरी पर लौटेगी तो तब वो वापस सिंगापुर लौटने की सोचेंगे तब तक गांव में रहकर यही काम करेंगे ताकि नौकरी के साथ परिवार का पेट पल सके।