Big News : चमोली के जिस गांव ने झेली कुदरत की मार, उसी गांव की गौरा देवी-महिलाएं कुल्हाड़ी से कटने को हो गई थीं तैयार - Khabar Uttarakhand - Latest Uttarakhand News In Hindi, उत्तराखंड समाचार

चमोली के जिस गांव ने झेली कुदरत की मार, उसी गांव की गौरा देवी-महिलाएं कुल्हाड़ी से कटने को हो गई थीं तैयार

Reporter Khabar Uttarakhand
5 Min Read
chipko andolan

chipko andolanचमोली : चमोली में आई आपदा से देशभर में खौफ पैदा हो गया। देश ही नहीं विदेशों से दिग्गज हस्तियों ने इस पर दुख जताया और संवेदना व्यक्त की। पूरा देश चमोली के लिए एकजुट हुआ औऱ सरकार के साथ हाथ से हाथ मिलाकर चलने का आश्वासन दिया। वहीं एक अहम जानकारी सामने आई है। आपको बता दें कि रैणी गांव आपदा का शिकार हुआ है, रैणी गांव को सबसे ज्यादा नुकसान इस आपदा से हुआ है। आपको बता दें कि रैणी गांव वहीं गांव  है जहां की महिलाएं पर्यावरण को बचाने के लिए चिपको आंदोलन चलाया था. लेकिन आज वहीं गांव कुदरत के कहर की मार झेल रहा है।

जी हां आपको बता दें कि चमोली का रैणी गांव ही है जहां की महिलाओं ने पर्यावरण को बचाने के लिए चिपको आंदोलन शुरू किया था। महिलाएं कटने को तैयार थी लेकिन कोई समझौता करने को तैयार नहीं थी। बात सत्तर के दशक की है जब रैणी गांव की महिलाएं पेड़ काटने के सरकारी आदेश के खिलाफ कटने को तैयार हो गईं थी। जब पेड़ काटने के लिए मजदूर कुल्हाड़ी लेकर पहुंचे तो रैणी गांव की महिलाएं पेड़ों से चिपक गई थीं और कटने को तैयार हो गईं थी जिसके बाद पेड़ काटने का फैसला स्थगित कर दिया गया। बता दें कि रैणी गांव की ही एक अनपढ़ और बुजुर्ग महिला गौरा देवी ने उस अनूठे पर्यावरण आंदोलन की अगुआई की थी. लेकिन आज उसी गांव को कुदरत की मार झेलनी पड़ी। इस हादसे में अब तक 31 लोगों के शव बरामद किए जा चुके हैं। वहीं कई लोग लापता हैं जिनकी तलाश जारी है। लोगों तक राशन पहुंचाया जा रहा है. कई टीमों का कार्य युद्ध स्तर पर जारी है। सीएम खुद घटनास्थल पर पहुंचे। डीजीपी अशोक कुमार मोर्चा संभाले हैं।

भारत में बढ़ गया था लकड़ी का व्यापार

भारत में लकड़ी का व्यापार भी बढ़ने लगा था हर लकड़ी व्यापारी को लकड़ी की ज़रुरत होती थी. इसी कारण जंगलों पर दबाव बढने लगा. हर कोई लकड़ियों के काटने से परेशान था इसी कारण सन् 1973 में एक आन्दोलन चलाया गया जिसका नाम था चिपको आन्दोलन. महिलायें और पुरुष पेड़ के आस-पास खड़े, एक दुसरे के हाथ को पकड़े हुए पेड़ों की सुरक्षा कर रहे थे. चमोली जिले में महिलाएं और पुरुष पेड़ों से चिपक गए थे. चिपको आन्दोलन सुन्दरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में शुरू हुआ था. यह आन्दोलन पेड़ की कटाई के खिलाफ विरोध करने का सबसे सफल आन्दोलन था. चिपको आन्दोलन एक ऐसा आन्दोलन था जिसमे गाँधी जी की सत्याग्रह की नीति को अपनाते हुए पुरुष और महिला आन्दोलनकारियों ने अहिंसा से आन्दोलन में भाग लिया. गौरा देवी, अमृता देवी, सुदेशा देवी, बचनी देवी और चंदी प्रसाद भट्ट ने मुख्य रूप से आन्दोलन में अपना योगदान दिया.

रैणी गांव गांव की गौरा देवी और महिलाओं ने किया आंदोलन

सन् 1974 में उत्तराखंड सरकार ने रैणी गांव में अलकनंदा नदी के किनारे 2500 पेड़ों की कटाई की नीलामी कर दी. तब गाँव की महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर उस फैसले का विरोध किया. 24 मार्च 1974 को रैंणी में पेड़ की कटाई शुरू होने ही वाली थी. तब एक लड़की ने गौरा देवी को बताया. तभी गौरा देवी गाँव की 27 महिलाओं को लेकर उस जगह चली गयी जहाँ कटाई हो रही थी. वहां जाकर लक्कड़हारो को पेड़ काटने से रोका. दोनों पक्षों में बातचीत शुरू हुई पर विफल रही. लकडहारे और ठेकेदार महिलाओं को चिल्लाने लगे. उन लोगों ने महिलाओं को गालियां भी दी और उन्हें बन्दूक दिखाकर धमकाने लगे. परन्तु महिलाएं शांतिपूर्वक आन्दोलन करती रही. वे पेड़ से चिपकी रही. आन्दोलन की खबर आस-पास के गाँवों में आग की तरह फ़ैल गयी. कुछ समय बाद आन्दोलन की खबर राज्य के मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा तक जा पहुंची. उन्होंने मामले को सुलझाने के लिए एक मीटिंग बुलाई. अंत में फैसला गाँव वालों और आन्दोलनकारियों के पक्ष में ही आया.

Share This Article